पृथक् निर्वाचिका के बारे में समस्या
गोलमेज सम्मेलन के दौरान महात्मा गाँधी ने दमित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचिका प्रस्ताव के खिलाफ अपनी दलील पेश करते हुए कहा था
अस्पृश्यों' के लिए पृथक निर्वाचिका का प्रावधान करने से उसकी दासता स्थायी रूप ले लेगी। क्या आप चाहते हैं कि 'अस्पृश्य' हमेशा 'अस्पृश्य' ही बने रहें ? पृथक निर्वाचिका से उनके प्रति कलंक का यह भाव और मजबूत हो जाएगा। जरूरत इस बात की है कि 'अस्पृश्यता' का विनाश किया जाए और जब आप यह लक्ष्य प्राप्त कर लें तो एक अड़ियल श्रेष्ठ' वर्ग द्वारा एक 'कमतर' वर्ग पर थोप दी गई यह अवैध व्यवस्था भी समाप्त हो जाएगी। जब आप इस अवैध प्रथा को नष्ट कर देंगे तो किसी को पृथक निर्वाचिका की आवश्यकता ही कहाँ रह जाएगी ?
1. महात्मा गाँधी अस्पृश्यों के लिए पृथक निर्वाचिका के विरुद्ध क्यों थे ?
2. गाँधीजी ने किस बात की आवश्यकता बताई?
3. पृथक निर्वाचिका की आवश्यकता कब नहीं रहेगी?