द्विबीजपत्री मूल में द्वितीयक वृद्धि (Secondary growth in dicot root): मूल में केवल द्विबीजपत्री मूल में द्वितीयक वृद्धि होती है। इनमें एधा प्रारम्भ से नहीं होती। मूल में संवहन एधा व काग एधा दोनों बाद में बनती हैं। स्तम्भ की भाँति इनमें भी रम्भीय व बारम्भीय द्वितीयक वृद्धि होती है। I.
रम्भीय द्वितीयक वृद्धि (Steler secondary growth): मूल में संवहन पूल अरीय व सीमित संख्या में होते हैं। जाइलम बाहाआदिदारुक (exarch) होता है। इनमें संवहन एथा का उद्भव पूर्णत: द्वितीयक है। यह फ्लोयम बंडल के ठीक नीचे तथा प्रोटोजाइलम के ऊपर स्थित ऊतकों से उत्पन्न होता है। फ्लोयम के नीचे व जाइलम के ऊपर बनी एधा आपस में मिलकर एक अखण्ड लहरदार एधा का छल्ला बनता है। यह छल्ला या वलय द्वितीयक जाइलम व द्वितीयक फ्लोयम का निर्माण करता है। द्वितीयक जाइलम का इसमें अधिक निर्माण होता है जिससे धीरे-धीरे कुछ समय पश्चात् संवहन एषा लहरदार न रहकर गोल हो जाती है। प्रत्येक प्रोटोजाइलम के सम्मुख बनने वाला ऊतक मृदूतक में परिवर्तित होकर प्राथमिक मज्जा रश्मियों का निर्माण करता है। द्वितीयक जाइलम के बनते जाने से प्राथमिक जाइलम मूल के मध्य में आ जाता है। द्वितीयक पलोयम के निरन्तर बनने से प्राथमिक फ्लोयम परिधि की ओर खिसकता हुआ अन्तत: नष्ट हो जाता है। इनमें वार्षिक वलय नहीं होती हैं।

बाह्यरम्भीय द्वितीयक वृद्धि (Extrasteler secondary growth): इनमें काग एधा की उत्पत्ति परिरम्भ से होती है। इसके आगे की घटनाएं द्विबीजपत्री तने की भाँति होती हैं। स्तम्भ की तुलना में मूल की छाल कम मोटी होती है। इनमें कहीं - कहीं वातन्त्र भी होते हैं। एकबीजपत्री पादपों में द्वितीयक वृद्धि नहीं होती है।