बाह्य आकारिकी (Extemal Morphology): मेंढक की आकृति त्रिशंकु (spindle) के आकार की होती है। अग्न भाग नुकीला होता है तथा पश्च भाग थोड़ा गोलाकार होता है। राना टिग्रीना की लम्बाई 12-18 सेमी. तथा चौड़ाई लगभग 5-8 सेमी. होती है। इसकी त्वचा श्लेष्मा के कारण लसलसी एवं चिकनी होती है। त्वचा हमेशा नम रहती है। मेंढक की ऊपरी सतह पर धारियाँ हरे रंग की होती हैं जिसमें अनियमित धब्बे होते हैं जबकि अधर सतह हल्की पीले रंग की होती है। नर का रंग थोड़ा गहरा होता है। मेंढक पानी में रहते हुए कभी पानी नहीं पीता है क्योंकि इसकी त्वचा ही पानी का अवशोषण करती है।

मेंढक का शरीर दो भागों में बंटा होता है जिन्हें क्रमशः सिर (Head) व धड़ (Trunk) कहते हैं। इस प्राणी में गर्दन व पूंछ का अभाव होता है। गर्दन की अनुपस्थिति से ही प्राणी का शरीर धारा रेखित होकर जलीय जीवन के उपयुक्त होता है।
(1) सिर : मेंढक का सिर त्रिभुजाकार तथा चपटा होता है। इसका अगला भाग संकड़ा, पिछला भाग चौड़ा होता है।
सिर पर निम्नलिखित रचनाएँ पाई जाती हैं:
- (i) मुख द्वार: सिर के नुकीले भाग को प्रोथ (shout) कहते हैं। प्रोथ के नीचे की ओर मुख द्वार स्थित होता है। मुख द्वार दो जबड़ों द्वारा घिरा रहता है, ऊपरी जबड़ा व नीचे वाला जबड़ा।
- (ii) बाह्य नासा छिद्र: प्रोथ के अग्र भाग में पृष्ठ तल पर एक जोड़ी सूक्ष्म छिद्र होते हैं, इन्हें बाह्य नासा द्वार कहते हैं। ये श्वसन क्रिया में सहायता करते हैं।
- (iii) नेत्र: सिर के सबसे ऊपरी भाग में एक जोड़ी बड़े उभरे हुए नेत्र होते हैं। प्रत्येक नेत्र चारों ओर घूम सकता है। नेत्र पर दो पलकें होती हैं- ऊपरी पलक व निचली पलक। ऊपरी पलक गतिहीन होती है जबकि निचली पलक गतिशील होती है। निचली पलक का ऊपरी भाग पारदर्शी झिल्ली का रूप ले लेता है। इसे निमेषक पटल कहते हैं। यह पटल जल के अन्दर आँखों की सुरक्षा करती है एवं एक चश्मे का कार्य करती है।
- (iv) कर्ण पटह: आँखों के पीछे दो गोलाकार पर्दे मिलते हैं जिन्हें कर्ण पटह कहते हैं। इनसे प्राणी को ध्वनि का ज्ञान होता है। नर प्राणियों के सिर के अधर तल पर एक जोड़ी हल्के लाल रंग की झुरींदार थैलियाँ होती हैं। इन्हें वाक कोष (vocal sic) कहते हैं। इन्हीं को फुलाकर नर मेंढक ध्वनि उत्पन्न करता है।
(2) धड़ (Trunk): सिर के पीछे का भाग धड़ कहलाता है। सम्पूर्ण धड़ की त्वचा ढीली होती है। धड़ के पिछले भाग के पृष्ठ क्षेत्र में कूबड़ पाई जाती है। यह कूबड़ श्रोणि मेखला (polvic girdlc) के मेरुदण्ड (vertebral column) से जुड़ने के कारण बन जाती है। धड़ के पिछले सिरे पर मध्य पृष्ठ रेखा के अन्त में एक वृत्ताकार छिद्र पाया जाता है, इसे अवस्कर द्वार (cloacal aperture) कहते हैं तथा इसके माध्यम से आहारनाल एवं जनन-मूत्र-तन्त्र दोनों शरीर से बाहर खुलते हैं।
धड़ पर दो जोड़ी टाँगें पाई जाती हैं: अग्र पाद (fore limb) एवं पश्च पाद (hind limb)।
- (i) अन पाद (Fore limb): प्रत्येक अग्र पाद के तीन भागऊपरी बाहु (upper arm), अग्र बाहु (fore arm) एवं हस्त (hand)। अन पाद में अंगुलियों की संख्या चार होती है। मेंढक के अग्न पाद में अंगूठे का अभाव होता है। अग्न पाद अपेक्षाकृत छोटे होते हैं।
- (ii) पश्च पाद (Hind limb): प्रत्येक पश्च पाद के भी तीन भाग होते हैं- ऊरु (thigh), जंघा (shank) तथा पाद (foot)। पश्च पाद में पाँच अंगुलियाँ होती हैं तथा इनके बीच त्वचा की एक झिरन्टनी फैली रहती है जिसे पाद जाल (web) कहते हैं। पश्च पाद तैरने में पतवार की तरह एवं फुदकने में स्प्रिंग की तरह कार्य कर गमन के लिए आवश्यक गति उत्पन्न करते हैं।
मेंढक में लैंगिक द्विरूपता देखी जा सकती है। नर मेंढक में टर्र..... टा..... टर्र..... टा की ध्वनि उत्पन्न करने वाले वाक कोष (vocal sac) के साथ-साथ मादा मेंढक में नहीं पाये जाते हैं। वाक कोष से उत्पन्न ध्वनि नर मेंढक मादा मेंढक को मैथुन के लिए आकर्षित करता है। इसी प्रकार नर मेंढक के मैथुन अंग (copulatory pad) से चिपचिपा पदार्थ निकलता है। मैथुनी आलिंगन (Amplexus) के समय नर मेंढक इन मैथुन अंग (copulatory pad) की सहायता से मादा मेंढक को मजबूती से पकड़ने में सहायता करता है।