आकारिकी (Morphology):
1. आकृति, परिमाप (Shape, size): केंचुए का शरीर लम्बा, पतला व नलाकार होता है। अग्र सिरा नुकीला व पश्च सिरा भौंटा (blunt) होता है। केंचुए की लम्बाई 15 से 20 सेमी, व मोटाई 03 से 0.5 सेमी. होती है।
2. रंग (Colour): इसका रंग भूरा होता है। यह रंग पोरफाइरिन (Porphyrin) वर्णक के कारण होता है। पोरफाइरिन प्रकाश की हानिकारक किरणों से जन्तु को सुरक्षा प्रदान करता है। पृष्ठ सतह का रंग अधर सतह की तुलना में अधिक गहरा होता है। इसकी मध्य पृष्ठ सतह पर त्वचा के नीचे मोटी पृष्ठ रक्त वाहिनी एक गहरे रंग की धारी के रूप में दिखाई देती है व इसी से इसकी पृष्ठ सतह पहचानी जाती है।
3. खण्डीभवन (Segmentation): केंचुए में वास्तविक खण्डीभवन (metameric segmentation) पाया जाता है। इसके शरीर में खण्डों की संख्या 100-120 तक होती है जो समान आकार के होते हैं। बाहर से केंचुए के दो खण्डों के बीच एक वृत्ताकार खाँच पाई जाती है, जिसे अन्तरखण्डीय खाँच (Inter - segmental grooves) कहते हैं। शरीर के भीतर दो विखण्डों के बीच अन्तरखण्डीय पट्ट (inter - segmental septa) पाये जाते हैं। इसके कारण आन्तरिक खण्डों की संख्या बाहरी खण्डों के बराबर होती है।
4. परिमुख व पुरोमुख (Peristomium and prostomium): केंचुए में स्पष्ट सिर (distinct) का अभाव होता हैं। इस पर नेत्र व स्पर्शकों का भी अभाव होता है। केंचुए के प्रथम खण्ड को परिमुख (peristomium) कहते हैं। इसकी अधर सतह पर एक छिद्र पाया जाता है जिसे मुख (mouth) कहते हैं। मुख को पृष्ठ से ढके हुए परिमुख से एक मांसल छोटा-सा उभार (projection) निकला रहता है जिसे पुरोमुख (Prostomium) कहते हैं। पुरोमुख को खण्ड नहीं माना जाता है क्योंकि यह परिमुख का ही एक भाग है। पुरोमुख (prostomium) द्वारा केंचुए को अंधेरे व प्रकाश का आभास होता है।

- अग्न पर्याणिका (Preclitellar region): यह 1 से 13 खण्डों तक का क्षेत्र होता है।
- पर्याणिका भाग (Clitellar region): यह 14 से 16 खण्डों से निर्मित होता है।
- पश्च पर्याणिका भाग (Post-clitellar region): यह 17 से अन्तिम खण्ड तक होता है।
6. शूक (Setae): केंचुए में प्रथम, अन्तिम व पर्याणिका (14, 15 व 16) खण्डों को छोड़कर सभी खण्डों में शूक (Setae) पाये जाते हैं। प्रत्येक खण्ड में इनकी संख्या 80-120 होती है। शूक काइटिन (chitin) नामक शृंगीय पदार्थ के बने होते हैं। प्रत्येक शूक छोटा S के आकार का हल्के पीले रंग का काटे के समान दिखाई देता है। शूक देहभित्ति में एक गर्त में धंसा रहता है जिसे शूक कोष (setae sac) कहते हैं। शूक के आगे 1/3 भाग पीछे एक फूला हुआ भाग पाया जाता है जिसे ग्रन्थिका (nodulus) कहते हैं। शूक से आकुंचक (retractor muscle) तथा अपाकुंचक पेशी (protractor muscle) पायी जाती है। शूक गमन में सहायक है।
7. बाह्य छिद्र (External apertures): केंचुए की बाहरी सतह पर अनेक छिद्र पाये जाते हैं, जो निम्न प्रकार है
- मुख (Mouth): यह एकल छिद्र प्रथम खण्ड के अधर तल पर पाया जाता है। इस खण्ड को परिमुख कहते हैं।
- गुदा (Anus): शरीर के अन्तिम खण्ड के छोर पर एक खड़ी दरार के रूप में गुदा पायी जाती है। शरीर के इस खण्ड को गुदा खण्ड (anal segment) अथवा पाइजीडियम कहते हैं।
- नर जनन छिद्र (Male genital aperture): यह 18वें खण्ड के अधर तल के पाश्वों पर स्थित होते हैं।
- मादा जनन छिद्र (Female genital aperture): यह एक छिद्र के रूप में क्लाइटेलम में 14वें खण्ड के अधर पर पाया जाता है।
- शक्रग्राहिका छिद्र (Spermathecal aperture): केंचुए में चार जोड़ी शुक्रग्राहिका छिद्र पाये जाते हैं जो ये 5/6, 6/7, 7/8 व 8/9 खण्डों के मध्य को खाँचों की अधर पार्श्व सतह पर एक जोड़ी प्रति खाँच पाये जाते हैं।
- पृष्ठ छिद्र (Dorsal aperture): यह 12वें खण्ड के बाद (अन्तिम खण्ड को छोड़कर) अन्तराखण्डीय खाँच के पृष्ठ पर पाया जाता है।
- वृक्कक छिद्र (Nephridio pore): प्रथम दो खण्डों को छोड़कर शरीर के समस्त खण्डों की अधर सतह पर अनेक सूक्ष्म छिद्र पाये जाते हैं जिनसे उत्सम पदार्थों को बाहर मुक्त करते हैं।
8. जनन पैपिला (Genital papilla): यह 17वें व 19वें खण्ड के अधर तल के पावों में उभार के रूप में पाये जाते हैं। ये मैथुन में सहायक होते हैं।