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नर मेंढक के नर जनन तन्त्र का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।

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प्रजनन तन्त्र (Reproductive system): कशेरुकी जन्तुओं के उत्सर्जी तन्त्र एवं जनन तन्त्र परस्पर सम्बन्धित होते हैं। इसलिए इन दोनों तन्त्रों को सम्मिलित रूप से जनन-मूत्र-तन्त्र (urinogenital system) कहते हैं। सभी कशेरुकी एकलिंगी प्राणि होते हैं। इसलिए मेंढक भी एकलिंगी होता है। अर्थात् नर एवं मादा अलगअलग होते हैं।

 नर जनन तन्त्र (Male reproductive system): मेंढक का नर जनन तन्त्र वृषण, शुक्र वाहिनिकाओं, मूत्र जनन वाहिनी, शुक्राशय, अवस्कर व अवस्कर द्वार का बना होता है।

(i) वृषण (Testis): प्रत्येक वृक्क की अधर तल पर अन सिरे के पास पीले रंग का बेलनाकार एक छोटा सा वृषण स्थित होता है। यह उदर गुहा की पृष्ठ भिति व वृक्क से एक पतली झिल्ली वृषणधार/ मीसोर्कियम (mesorchium) द्वारा जुड़ा रहता है। मीसोर्कियम वास्तव में पेरिटोनियम की दोहरी परत है। प्रत्येक वृषण में 10 से 12 पतलीपतली शुक्रवाहिकाएँ निकल कर मीसोर्कियम से होती हुई वृक्क के अन्दर, भीतरी किनारे के पास स्थित बिडर्स नलिका (bidder's canal) में खुलती हैं।

मेंढक का नर जनन तन्त्र

वृषण की आन्तरिक संरचना-वृषण में अनेक सूक्ष्म कुण्डलित नलिकाएँ पाई जाती हैं जिन्हें शुक्रजनक नलिकाएँ (seminiferous tubules) कहते हैं। प्रत्येक शुक्रजनक नलिका की दीवार में बाहर की ओर पतली प्रोप्रिया कला (membrana propria) नामक झिल्ली होती है और इसके अन्दर की ओर जनन उपकला (eerminal epithelium) पाई जाती है। जनन उपकला की कोशिकाएं शुक्र जनन (spermatogenesis) की क्रिया द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करती है। शुक्रजनक नलिकाओं के बीच-बीच में उपस्थित योजी ऊतक में रक्त केशिकाएँ, तन्त्रिका तन्तु एवं अन्तराली कोशिकाएँ (interstitial cells) पाई जाती हैं। अन्तराली कोशिकाओं द्वारा नर हार्मोन टेस्टोस्टेरोन (testosterone) उत्पन्न किया जाता है जिसके कारण नर मेंढक में द्वितीयक लैंगिक लक्षण (secondary sexual characters) विकसित होते हैं।

शुक्रजनक नलिकाएं एक सिरे पर बन्द होती हैं। इनके दूसरे सिरे पतले व विभाजित होकर एक महीन जाल वृषण जाल (retetestis) बनाते हैं। शुक्रवाहिकाएँ इसी जाल से निकलती हैं।

(ii) शुक्रवाहिका: शुक्राणु शुक्रजनक नलिकाओं से वृषण जाल में व वृषण जाल से शुक्रवाहिका में आते हैं। यहाँ से वृक्क में स्थित बिडर्स नलिका (bidder's canal) में आ जाते हैं। बिडर्स नलिका से कई अनुप्रस्थ संग्रह नलिकाएँ निकलकर एक अनुदैर्घ्य संग्रह नलिका (longitudinal collecting tubule) में खुलती हैं जो स्वयं मूत्र वाहिनी में खुलती है।

(iii) मूत्रवाहिनी: नर मेंढक में मूत्र वाहिनी द्वारा मूत्र और शुक्राणु दोनों ही बाहर निकलते हैं। इस प्रकार मूत्रवाहिनी शुक्रवाहिनी (vasdeference) का भी कार्य सम्पन्न करती है। इसलिए इसे जनन मूत्रवाहिनी (urinogenital duct) कहते हैं।

मेंढक की कुछ जातियों में मूत्र-जनन वाहिनी का अन सिरा फूल कर शुक्राशय (seminal vesicles) बनाता है। शुक्राणु बिडर्स नलिका से अनुप्रस्थ संग्रह नलिका, अनुप्रस्थ संग्रह नलिका से अनुदैर्घ्य संग्रह नलिका में होते हुए शुक्राशय में (यदि हो तो) एकत्रित हो जाते हैं। मैथुन के समय ये शुक्राणु मूत्र जनन नलिका से निकलकर अवस्कर में आ जाते हैं।

(iv) अवस्कर: यह एक छोटा मध्य में स्थित एक कक्ष होता है जो कि मल, मूत्र तथा शुक्राणुओं को बाहर निकालता है।

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