अलवार और नयनार और वीरशैव दक्षिण भारत के विभिन्न विचारधारा वाले संत थे। जहां अलवार और नयनार तमिलनाडु से संबंधित थे, वहीं वीरशैव कर्नाटक से संबंध रखते थे। उन्होंने जाति प्रथा का अपने अपने तरीके से विरोध इस प्रकार किया।
- अलवार और नयनार संतों अपनी रचनाओं के माध्यम से जाति प्रथा पर कटाक्ष किया। उनकी रचनाओं को वेदों के समान महत्वपूर्ण माना जाता था। अलवर संतों के प्रमुख काव्य नलयिरादिव्यप्रबंधन को तमिल वेद के रुप में प्रतिष्ठित किया गया।
- अलवार और नयनार संतो ने जाति प्रथा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व का तीव्र विरोध किया। अलवार और नयनार संत अलग-अलग समुदाय से आते थे। जैसे किसान, शिल्पकार, ब्राह्मण आदि। कुछ संत तो ऐसी जातियों से आते थे जो जिन्हें अछूत माना जाता था।
- वीरशैवों ने पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानने से इंकार कर दिया और उन्होंने जाति प्रथा का पूर्णतया विरोध किया। उन्होंने ब्राह्मणों द्वारा प्रतिपादित नियमाचारों को मानने से इंकार कर दिया, जिसमें वयस्क-विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया था। उन्होंने वयस्क विवाह और विधवा पुनर्विवाह को मान्यता प्रदान की। इस कारण ऐसे समुदाय जिनके साथ जातिगत भेदभाव किया जाता था शैववीरों के अनुयायी हो गए। उन्होंने संस्कृत भाषा को छोड़कर कन्नड़ भाषा का प्रयोग करना शुरू कर दिया।
इस तरह अलवार, नयनार और शैववीरों ने अपने-अपने तरीके से जातिगत प्रथाओं का विरोध किया।