जब कभी दो या से अधिक व्यक्ति किसी उपक्रम के साथ-साथ कार्य करते है, तो इन व्यक्तियों के मध्य कार्य को बांटने की आवश्यकता होती है। इसी का नाम "संगठन" है।
अंग्रेजी भाषा के शब्द " Organizations " की उत्पत्ति " Organism " से हुई है, जिसका आश्य देह के ऐसे टुकड़ों से है, जो परस्पर इस प्रकार संबंधित है कि एक पूर्ण इकाई के रूप मे कार्य करते है। जिस तरह मावन शरीर की समस्त कार्यवाही का संचालन मानव मस्तिष्क द्वारा होता है, उसी प्रकार एक व्यावसायिक संस्था भी विभिन्न विभागों मे विभक्त होती है। जैसे- क्रय, वित्त, कर्मचारी आदि विभाग। इस तरह " संगठन " वास्तव मे वह तंत्र है, जो लोगों मे एक साथ रहने की सामर्थ्य पैदा करता है।
संगठन की परिभाषा
संगठन एक अत्यंत विस्तृत शब्द है, अतः इसकी कोई एक ऐसी परिभाषा देना कठिन है, जो सर्वमान्य हो। विभिन्न विद्वानों ने संगठन की विभिन्न परिभाषाएं दी है, इनमें से कुछ इस प्रकार है--
पो. हैन के अनुसार," किसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिये उत्पादन के साधन को सर्वोत्तम ढंग से समायोजित करने के कार्य को संगठन कहा जाता है।"।
जी. ई. मिलवाई के अनुसार," कार्य और कार्मचारी समुदाय का मधुर संबंध संगठन कहलता है।"
प्रो. बाई के शब्दों मे," व्यावसायिक उपक्रम का सारा कार्य एक प्रकार का श्रम है। यह आय तथा धन प्राप्त करने के लिये किया गया मानसिक प्रयास है। यह अन्य प्रकार के श्रम से भिन्न श्रम है, क्योंकि इसमे विशेष विद्यमान रहते है।"
लैस्बर्ग एवं स्प्रीगल के शब्दों मे," संगठन किसी उपक्रम के विभिन्न घटकों के बीच संरचनात्मक संबंध होता है।"
मैक्फारलैण्ड के अनुसार," संगठन का आशय निर्दिष्ट व्यक्तियों के उस समूह से है जो उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये अपने प्रयत्नों का योगदान है।"
उर्विक के अनुसार," संगठन का अर्थ यह निर्धारित करना है कि किसी उद्देश्य या योजना को प्राप्त करने के लिए क्या-क्या क्रियाएँ करनी आवश्यक है तथा इनको ऐसी श्रेणियों में विभाजित करना है जिन्हें अलग-अलग व्यक्तियों मे सौंपा जा सके।"
उक्त परिभाषाओं के अध्ययन के बाद संगठन की एक उपयुक्त परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है," संगठन एक ओर उत्पादन के विभिन्न उपादानों को एकत्र करके काम पर लगाना तथा उनके बीच ऐसा सहयोग एवं सामंजस्य स्थापित करना है कि वे उत्पादन में अपना अधिकतम योग दे सके, तथा दूसरी ओर कार्यरत व्यक्तियों के मध्य मधुर संबंध स्थापित कर सकें।"
संगठन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1) व्यक्तियों का समूह: एक संगठन का निर्माण उस समय होता है जब व्यक्तियों का एक समूह किसी सामान्य उद्देश्य के लिए अपने प्रयत्नों को एक साथ मिला देता है और उसी सामान्य उद्देश्य के लिए स्वेच्छापूर्वक सामान्य प्रबंधन करता है।
2) काम का विभाजन: संगठन की स्थापना में सम्पूर्ण काम का विभिन्न कार्यकलाप एवं कार्यों में विभाजन तथा इनका विभिन्न व्यक्तियों को उनकी निपुणता, योग्यता एवं अनुभव के अनुसार सौंपना सम्मिलित है।
3) सामान्य उद्देश्य: प्रत्येक संगठन का प्रादुर्भाव उद्यम के लक्ष्यों के आधार पर होता है और ये लक्ष्य नियुक्त व्यक्तियों के व्यक्तिगत लक्ष्यों से अलग होते हैं। संगठन का सामान्य उद्देश्य ही संगठन के सदस्यों में सहयोग का आधार प्रदान करता है।
4) लम्बवत एवं क्षैतिजिक संबंध: एक संगठन विभिन्न विभागों एवं खंडों के अतिरिक्त वरिष्ठों एवं अधीनस्थों में सहकारिता संबंध स्थापित करता है। विभिन्न कार्यों एवं कार्यकलाप जैसे, उत्पादन, विपणन, वित्त, आदि का एकीकरण समुचित समन्वय प्राप्त करने के लिये किया जाता है। प्रत्येक विभाग अथवा खंड में वरिष्ठों एवं अधीनस्थों के कार्यों एवं दायित्वों का भी एकीकरण किया जाता है ताकि उनके संयुक्त प्रयत्नों का उद्देश्य सफल हो सके।
5) आदेश की श्रृंखला (Chain of Command): एक संगठन में वरिष्ठ-अधीनस्थ संबंधों की स्थापना उच्च स्तर के प्रबंधन से अगले निचले स्तर के प्रबंधन को चलाने वाले प्राधिकार के आधार पर होती है जो एक सोपानिक श्रृंखला को जन्म देती है। इसे ही आदेश की श्रृंखला के रूप में जाना जाता है जो सम्प्रेषण की रेखा भी निश्चित करता है।
6) संगठन की गतिशीलता (Dynamics of Organisation): व्यक्तियों में संरचनात्मक संबंधों के अलावा उनके कार्यकलाप एवं कार्यों के आधार पर एक संगठनात्मक अंतःक्रिया भी होती है जो व्यक्तियों और व्यक्ति समूहों की भावनाओं, रुझानों (attitudes) एवं व्यवहार पर आधारित है। संबंध के पहलू संगठन के कामकाज में एक गतिशील तत्व प्रदान करते हैं। ये समय-समय पर परिवर्तित होते रहते हैं।