आज से करीब 45 साल पहले उत्तराखंड में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसे नाम दिया गया था चिपको आंदोलन. इस आंदोलन की चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी और भारत के प्रसिद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया । इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचने के लिए गांव के लोग पेड़ से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था । चिपको आंदोलन की शुरुआत प्रदेश के चमोली जिले में गोपेश्वर नाम के एक स्थान पर की गई थी। आंदोलन साल 1972 में शुरु हुई जंगलों की अंधाधुंध और अवैध कटाई को रोकने के लिए शुरू किया गया। इस आंदोलन में महिलाओं का भी खास योगदान रहा और इस दौरान कई नारे भी मशहूर हुए और आंदोलन का हिस्सा बने।
इस आंदोलन में वनों की कटाई को रोकने के लिए गांव के पुरुष और महिलाएं पेड़ों से लिपट जाते थे और ठेकेदारों को पेड़ नहीं काटने दिया जाता था। जिस समय यह आंदोलन चल रहा था, उस समय केंद्र की राजनीति में भी पर्यावरण एक एजेंडा बन गया थाय इस आन्दोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया ।