(i) लेखक के पिता अपने स्वभाव के अनुरूप स्वयं ही लाचार और दयनीय बन जाते है। आज की जटिल जीवन की स्थितियों में सहजता कितनी खतरनाक हो सकती है लेखक के पिता इससे अनभिज्ञ है। अस्तित्व की रक्षा के लिए दृढ़ता आवश्यक है। लेखक के पिता की सहजता उन्हें किसी तरह के प्रतिरोध करने से रोकती है। उन्हें जब धतूर का काढ़ा दिया जाता है तो वे उसे सहज स्वीकार कर लेते हैं। शायद यह जानते हुए भी कि धतुरा घातक नशीला पदार्थ होता है।
(ii) रामचंद्र शुक्ल के काव्य आदर्श प्रबंध काव्य थे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल प्रबंधक काव्य को अपना काव्य आदर्श मानते थे। उनके अनुसार प्रबंध काव्य ऐसा कार्य होता है, जिसमें मानव जीवन का समग्र दर्शन दृश्य होता है।
प्रबंध काव्य जीवन के संपूर्ण पक्ष को प्रकट करता है। यह एक परिसीमति काव्य है, क्योंकि यह गीतिकाव्य होता है। इसीलिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य आदर्श प्रबंध काव्य थे।
(iii) यह पद कवि मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित कड़बक से लिया गया है। उन्होंने कलंक का तात्पर्य चंद्रमा से किया है, कांच की तुलना कोयला से और सोना तथा कंचन से तात्पर्य सुमेरु पर्वत से है। जो इस बात को स्पष्ट करता है कि इसका संबंध भगवान शिव, उनकी त्रिशूल और माता पार्वती के संदर्भ में है।