वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा- वैद्युत क्षेत्र में किसी वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा उस कार्य के बराबर होती है जो कि द्विध्रुव को अनन्त से क्षेत्र के भीतर लाने में करना पड़ता है। एकसमान वैद्युत क्षेत्र में वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक- माना कि एक वैद्युत द्विध्रुव AB को अनन्त से किसी एकसमान वैद्युत क्षेत्र E में इस प्रकार लाया जाता है कि द्विध्रुव आघूर्ण p सदैव क्षेत्र B की दिशा में रहे (चित्र )। क्षेत्र E के कारण द्विध्रुव के आवेश +q पर एक बल F (= qE) क्षेत्र की दिशा में तथा आवेश -q पर उतना ही बल F (= qE) विपरीत दिशा में कार्य करता है। अतः द्विध्रुव को क्षेत्र में लाने के लिए, आवेश +q पर बाहरी कर्ता द्वारा कार्य किया जाएगा जो धनात्मक होगा, जबकि -q आवेश पर स्वयं क्षेत्र कार्य करेगा, अर्थात् कार्य प्राप्त होगा जो ऋणात्मक होगा। परन्तु चित्र से स्पष्ट है कि अनन्त से क्षेत्र के भीतर – q आवेश को लाने में प्राप्त कार्य +q को लाने में किए जाने वाले कार्य से अधिक होगा। बिन्दु A तक लाने में प्राप्त कार्य तथा किया गया कार्य बराबर होंगे। अत: वे एक-दूसरे को निरस्त कर देंगे। अतः द्विध्रुव को स्थिति AB तक लाने में नेट कार्य -q आवेश को A से B तक लाने में प्राप्त कार्य के बराबर होगा, जो ऋणात्मक होगी।

