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वैद्युत संधारित्र क्या होते हैं? इनके किन्हीं दो उपयोगों का उल्लेख कीजिए। धातु के दो गोलों की त्रिज्याएँ 18 सेमी तथा 27 सेमी हैं। प्रत्येक को 75 माइक्रोकूलॉम आवेश दिया गया है। चालक द्वारा दोनों गोलों को जोड़ने पर उभयनिष्ठ विभव का मान ज्ञात कीजिए।

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वैद्युत संधारित्र- वैद्युत संधारित्र एक ऐसा समायोजन है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किए बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित की जा सकती है। माना कि किसी चालक को q आवेश देने पर उसका वैद्युत विभव V हो जाता है, तब चालक की धारिता, C = q/V

संधारित्रों के उपयोग- संधारित्रों के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं- 

1. आवेश का संचय करने में संधारित्र को मुख्यत: आवेश का संचय करने में उपयोग किया जाता है। किसी परिपथ में क्षणिक एवं प्रबल धारी प्राप्त करने के लिए उस परिपथ में एक आवेशित संधारित्र जोड़ दिया जाता है। क्षणिक एवं शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए स्पन्दित वैद्युत चुम्बक (pulsed electromagnet) का प्रयोग करते हैं जो किसी आवेशित संधारित्र से ही प्रबल धारा प्राप्त करते हैं।

2. ऊर्जा का संचय करने में-आवेशित संधारित्र की प्लेटों के बीच वैद्युत क्षेत्र में पर्याप्त वैद्युत स्थितिज ऊर्जा संचित रहती है। यदि संख्या में बहुत अधिक आवेशित संधारित्रों का एक स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता 93 संयोजन (संधारित्र बैंक) बनाएँ तो उस ऊर्जा की बड़ी मात्रा को संचित किया जा सकता है और समय आने पर उससे आवश्यकतानुसार ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। 

3. इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में विभिन्न कार्यों के लिए संधारित्रों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, रेडियो-आवृत्ति के वैद्युत चुम्बकीय दोलनों के उत्पादन एवं संसूचन में अर्थात् रेडियो, टेलीविजन इत्यादि के कार्यक्रमों के प्रसारण तथा अभिग्रहण में, वैद्युत शक्ति-सम्भरण (electric power supply) में वोल्टता के उच्चावचन (fluctuations) कम करने में प्रायः फिल्टर प्रयोग होते हैं और संधारित्र एकदिशीय धारा के स्पन्दनों (pulses) के आयाम को कम करके दिष्ट धारा प्राप्त कराने में सहायक होता है। 

4. वैद्युत उपकरणों में—वैद्युत उपकरणों जैसे-प्रेरण कुण्डली (induction coil), मोटर इंजन के ज्वलन तन्त्र (ignition system), बिजली के पंखे इत्यादि में संधारित्रों का उपयोग किया जाता है। हम जानते हैं कि जब किसी प्रेरकीय परिपथ को अचानक तोड़ा जाता है, तो उस स्थान पर चिंगारी (spark) उत्पन्न होती है, परन्तु यदि उसे परिपथ में संधारित्र को लगाया गया है, तो परिपथ के टूटने से उत्पन्न प्रेरित धारा संधारित्र की प्लेटों को आवेशित कर चिंगारी उत्पन्न होने की सम्भावना को समाप्त कर देती है। 

5. वैज्ञानिक अध्ययन में-वैज्ञानिक अध्ययनों में भी संधारित्रों का विशेष महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के संधारित्रों में विभिन्न आकार की प्लेटों के बीच अलग-अलग विन्यासों (configurations) के वैद्युत क्षेत्र स्थापित कर उसमें विभिन्न परावैद्युत पदार्थों को रखकर वैद्युत क्षेत्र में उनके वैद्युत व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। दिया है, गोलों की त्रिज्याएँ 0.18 मीटर तथा 0.27 मीटर हैं। a मीटर त्रिज्या के गोले की धारिता

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