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विभवमापी की संरचना तथा कार्यविधि का वर्णन कीजिए। इसके द्वारा दो सेलों के वि० वाहक बल की तुलना कैसे की जाती है। परिपथं आरेख बनाकर समझाइए।

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विभवमापी की संरचना- विभवमापी में मुख्यतः एक उच्च विशिष्ट प्रतिरोध व निम्न प्रतिरोध ताप गुणांक की मिश्रधातु (जैसे- कॉन्सटेन्टन, मैंगनिन आदि) का 4 से 12 मीटर तक लम्बा एक समान व्यास का तार होता है। इस तार को एक-एक मीटर के समान्तर टुकड़ों के रूप में चित्र की भाँति एक लकड़ी के तख्ते पर बिछा देते हैं। तार के ये सभी टुकड़े ताँबे की मोटी पत्तियों के द्वारा श्रेणीक्रम में ज़ोड़ दिये जाते हैं। इस सम्पूर्ण तार के प्रारम्भ होने वाले सिरे और अन्तिम सिरे पर क्रमशः संयोजक पेंच A और B लगा देते हैं। तारों की लम्बाई के समान्तर एक मीटर पैमाना M लगा रहता है, जिससे जौकी J की स्थिति पढ़ ली जाती है।

विभवमापी का सिद्धान्त- इसमें मुख्यत: एक लम्बा व एकसमान व्यास की धातु का प्रतिरोध-तार AB होता है। इसका एक सिरा A एक संचायक-बैटरी के धन-ध्रुव से जुड़ा होता है। बैटरी का ऋण-ध्रुव एक कुंजी (K) तथा एक धारा नियन्त्रक (Rh) के द्वारा सार के दूसरे सिरे B से जोड़ दिया जाता है। धारा नियन्त्रक के द्वारा तार AB में धारा को घटाया अथवा बढ़ाया जा सकता है। E एक सेल है जिसका विद्युत वाहक बल नापना है। इसका धन-ध्रुव तार के A सिरे से जुड़ा होता है। तथा ऋण-ध्रुव एक धारामापी G के द्वारा जौकी J से जुड़ा होता है जो तार पर खिसकाकर कहीं भी स्पर्श करायी जा सकती है।

विभवमापी द्वारा दो सेलों के वि0 वा बल की तुलना- पहले विभवमापी के तार के सिरों A व B के बीच एक संचायक सेल अथवा बैटरी B1, धारी-नियन्त्रक Rh तथा एक कुंजी K1 जोड़ देते हैं। (चित्र)। B1 का धन-ध्रुव तार के A सिरे से जोड़ा जाता है। अब जिन दो सेलों E1 व E2 के विद्युत वाहक बलों की तुलना करनी है, उनके धन-ध्रुवों कों A से जोड़ देते हैं तथा ऋण-ध्रुवों को एक द्वि-मार्गी (two-way) कुंजीk, के द्वारा एक शन्टयुक्त धारामापी G से जोड़कर जौकी J से जोड़ देते हैं। पहले कुंजी K1 को लगाकर तार AB के सिरों के बीच विभवन्तर स्थापित करते हैं। अब पहले सेल” E1 को कुंजी K2 के द्वारा परिपथ में डालते हैं और जौकी के द्वारा शून्य-विक्षेप स्थिति ज्ञात कर लेते हैं। मान लो तार पर शून्य-विक्षेप स्थिति की बिन्दु A से दूरी l1 सेमी है। तब E = Kl1 जहाँ K तार पर विभव-प्रवणता है। इसी प्रकार दूसरे सेल E2 को कुंजी K2 के द्वारा परिपथ में डालकर पुनः शून्य-विक्षेप स्थिति ज्ञात कर लेते हैं। मान लो इस स्थिति की बिन्दु A से दूरी l2 सेमी है। तब

यदि इनमें एक सेल प्रमाणिक सेल हो, जिसका विद्युत वाहक बल ज्ञात होता है तो दूसरी सेल का विद्युत वाहक बल ज्ञात किया जा सकता है। विभवमापी में शून्य-विक्षेप की स्थिति में, सेल E, अथवा E, में कोई धारा नहीं बहती अर्थात् सेल खुले। परिपथ में होती है। अतः विभवमापी से सेल का यथार्थ विद्युत वाहक बल प्राप्त होता है।

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