1. उभयलिंगाश्रयी (Monoecious) – जब नर तथा मादा पुष्प एक ही पौधे पर लगे होते हैं, तो ऐसे पौधे को एकक्षयक कहते हैं, जैसे-लौकी, कद्दू, खीरा, मक्का, अरण्डी आदि। एकक्षयक पौधों में बहुधा नर पुष्प शीर्ष की ओर तथा मादा पुष्प नीचे की ओर लगे रहते हैं। इन पौधों के पुष्पों में स्व-परागण भी हो सकता है।
एकलिंगाश्रयी (Dioecious) – जब नर तथा मादा पुष्प दो भिन्न पौधों पर लगे होते हैं, तो ऐसे पौधों कोद्विक्षयक कहते हैं, जैसे – पपीता, शहतूत, भाँग, केवड़ा, डेटपाम (datepalm) आदि। द्विक्षयक पौधों में केवल पर-परागण ही सम्भव है।
2. समकालपक्वता (Homogamy) – इस प्रकार के स्वपरागण में पुष्प का परागकोष तथा वर्तिकाग्र एक ही समय में परिपक्व होते हैं; जैसे-गार्डेनिया (Gardenia); कॉनवालवुलस (Convolvulus); सदाबहार (Vinca rosed = Catharanthus roseus), गुलाबांस (Mirabilis) आदि।
पूर्वऍपक्वता (Protandry) – जब पुष्प में पुमंग (androecium), जायांग (gynoecium) से पहले परिपक्व हो जाते हैं तब इस अवस्था को पूर्वऍपक्व (protandrous) कहते हैं। इन पुष्पों के परागकोश से निकलकर परागकण उसी पौधे के पुष्पों का परागण नहीं कर पाते परन्तु दूसरे पुष्पों के वर्तिकाग्र पर पहुँचकर परागण करते हैं; जैसे-गुड़हल, कपास, क्लेरोडेन्ड्रान, सालवियो, सूर्यमुखी, गेंदा, धनिया, सौंफ, बेला आदि। यह दशा पूर्वस्त्रीपक्वता की अपेक्षा अधिक सामान्य है।
3. भ्रूणपोषी बीज (Endospermic Seeds) – ऐसे सभी बीज जिनमें भ्रूणपोष बीजों के अंकुरण तक पाया जाता है उन्हें भ्रूणपोषी बीज या एल्ब्यूमिनस बीज (albuminous seeds) कहते हैं। इन बीजों में बीजपत्र (cotyledons) बहुत पतले होते हैं क्योंकि इनमें भोजन भ्रूणपोष में संचित रहता है; जैसे-सुपारी (Areca), फाइटेलेप्स (Phyteleps), डेट (Phoenix), अरण्डी (Caster), गेहूँ (Wheat), मक्का (Maize) आदि।
अभ्रूणपोषी बीज (Non-endospermic Seeds) – कुछ पौधों, जैसे–चना, सेम, मटर में भ्रूणपोष, भ्रूण-परिवर्धन में पूर्णरूप से प्रयोग हो जाता है। ऐसे बीजों के बीजपत्रों (cotyledons) में भोजन संचित रहने के कारण ये मोटे होते हैं। इन्हें अभ्रूणपोषी (non-endospermic) या एक्सएल्ब्यूमिनस(exalbuminous) बीज कहते हैं।