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पुष्पी पादपों में लघुबीजाणुजनन का सचित्र वर्णन कीजिए। 

या 

केवल नामांकित चित्रों की सहायता से आवृतबीजी पौधों में लघुबीजाणुजनन का वर्णन कीजिए।

या 

संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए – ‘लघुबीजाणुजनन’।

या 

परागकोश के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। 

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लघुबीजाणुजनन

पुष्पी पादपों में एक परागकोश (anther) एक उभार के रूप में कुछ विभज्योतिकी कोशिकाओं का एक अण्डाकार समूह होता है। शीघ्र ही यह एक चार पालियों वाला आकार बना लेता है। अब, चारों पालियों में बाह्य त्वचा के अन्दर अलग-अलग अधःस्तरीय कोशिकाएँ (hypodermal cells) बड़े आकार की तथा अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं। प्रत्येक पालि (lobe) में इस प्रकार की

कोशिकाओं की प्राय: एक ऊर्ध्व पंक्ति होती है। इन्हें प्रप्रसू कोशिकाएँ (archesporial cells) कहा जाता है। कभी-कभी अनुप्रस्थ काट में इनकी संख्या अधिक भी हो सकती है। प्रत्येक प्रप्रसू कोशिकामें एक बड़ा तथा स्पष्ट केन्द्रक एवं प्रचुर मात्रा में जीवद्रव्य होता है। यह कोशिका एक परिनतविभाजन (periclinal division) अर्थात् पालि की परिधि के समानान्तर विभाजन द्वारा विभाजित होकर निम्नांकित दो कोशिकाएँ बनाती है – 

1. प्राथमिक भित्तीय कोशिका (Primary Parietal Cell) – बाहरी कोशिका जो बाह्य त्वचा की ओर होती है फिर से एक परिनत विभाजन (parietal division) करके दो कोशिकाओं-बाहरी अन्त:भित्तीय कोशिका (endothecial cell) तथा भित्तीय कोशिका (parietal cell) में बँट जाती है। अन्त:भित्तीय कोशिका केवल पालि की परिधि के साथ 90° का कोण बनाते हुए अर्थात् अपनत(anticlinal) विभाजन द्वारा विभाजित होती है।

साथ ही भित्तीय कोशिका कई परिनत तथा अनेक अपनत विभाजनों के द्वारा विभाजित होती है। इन विभाजनों से परागपुट (pollen chamber) की भित्ति का निर्माण होता है। सम्पूर्ण पालि में ऊर्ध्व पंक्ति में उपस्थित अन्त:भित्तीय कोशिकाएँ विभाजन के बाद अन्त:भित्ति (endothecium) बना लेती हैं। भित्ति कोशिकाओं में से दो-तीन स्तर, मध्य स्तर (middle layers) का निर्माण करते हैं। मध्य स्तर की सबसे भीतरी परत पोषक कोशिकाएँ बनाती हैं, जिसे टैपेटम (tapetum) कहते हैं।

2. प्राथमिक बीजाणुजनक कोशिका (Primary Sporogenous Cell) – यह भीतरी कोशिका होती है जो बिना किसी क्रम के, अनियमित रूप में विभाजित होकर परागपुट (pollen chamber) के अन्दर बीजाणुजनक कोशिकाओं का एक समूह बना लेती है। स्पष्ट है। चारों पालियों में अलग-अलग तथा ऊर्ध्व रूप में निर्मित ये संरचनाएँ परागपुट हैं। इस समय तक योजि (connective) के एक ओर की दो पालियाँ मिलकर एक बड़ी पालि बनाती हैं तथा दूसरी ओर की दूसरी बड़ी पालि। अब प्रत्येक परागपुट में उपस्थित बीजाणुजनक कोशिकाएँ गोल होने लगती हैं, कुछ कोशिकाएँ टूट-फूटकर बढ़ती हुई कोशिकाओं के पोषण के काम आ जाती हैं, साथ ही इन कोशिकाओं का पोषण टैपेटम की कोशिकाओं के द्वारा भी होता है। इस प्रकार विकसित प्रत्येक कोशिका वास्तव में लघुबीजाणु मातृ कोशिका (microspore mother cell) है। एक परागपुट में इनकी संख्या सहस्त्रों हो सकती है।

सभी लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं का केन्द्रक, अब अर्द्ध-सूत्री विभाजन (reduction division or meiosis) द्वारा विभाजित होता है और चार केन्द्रक बनते हैं। इस प्रकार प्रत्येक केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका के केन्द्रक (2n) से आधी अर्थात् अगुणित (n = haploid) रह जाती है। सामान्यत: चारों केन्द्रक बनने के बाद ही कोशिकाद्रव्य विभाजन होता है, किन्तु कुछ एकबीजपत्री पौधों में कोशिकाद्रव्य का विभाजन प्रथम अर्द्ध-सूत्री विभाजन के बाद ही आरम्भ हो जाता है।

प्रत्येक अगुणित कोशिका ही लघुबीजाणु (microspore) है। ये चार-चार के समूह अर्थात् चतुष्क(tetrad) में विन्यसित रहते हैं, जो अधिकतर द्विबीजपत्रियों में (i) चतुष्फलकीय (tetrahedral), किन्तु अधिकतर एकबीजपत्रियों में (ii) समद्विपाश्विक (isobilateral) होते हैं।

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