जनसंख्या नियन्त्रण
भारत में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाये जा सकते हैं –
1. शिक्षा की सुविधाओं का विस्तार – शिक्षित व्यक्ति प्रायः आय एवं व्यय के सिद्धान्त से भली-भाँति परिचित होने के कारण सीमित परिवार के महत्त्व को समझते हैं। यही कारण है कि शिक्षित परिवार सामान्यतः सीमित ही होते हैं।
2. बच्चों की संख्या का निर्धारण – जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए प्रति परिवार बच्चों की संख्या निर्धारित की जानी चाहिए। इसके लिए सरकारी स्तर पर कानून में संशोधन किये जाने चाहिए और यदि सम्भव न हो तो सीमित परिवार वाले व्यक्तियों को ऐसे प्रोत्साहन दिये जाने चाहिए जिनसे कि जन-सामान्य में इसके प्रति रुचि उत्पन्न हो सके। परिवार में बच्चों की संख्या निश्चित करके अनियन्त्रित ढंग से बढ़ रही जनसंख्या पर तुरन्त प्रभावी रोक लगायी जा सकती है।
3. विवाह योग्य आयु में वृद्धि – विवाह का जनन से सीधा सम्बन्ध है; अतः विवाह योग्य आयु में वृद्धि करने से प्रजनन दर में कमी लायी जा सकती है। वर्तमान समय में यह स्त्रियों के लिए कम-से-कम 18 वर्ष तथा पुरुषों के लिए कम-से-कम 21 वर्ष है। इसे अब क्रमशः 23 वर्ष और 25 वर्ष कर देना चाहिए। इसके साथ-साथ देर से विवाह करने वाले स्त्रियों एवं पुरुषों को प्रोत्साहन पुरस्कार देना भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
4. गर्भपात को ऐच्छिक एवं सुविधापूर्ण बनाना – हमारे देश में गर्भपात को प्राचीन समय से ही घृणित माना गया है। गर्भपात की सुविधा को शीघ्र ही राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध कराना जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए बहुत आवश्यक है। अनावश्यक गर्भ से छुटकारा पाकर स्त्रियाँ अपने परिवार में बच्चों की संख्या सीमित रख सकती हैं।
5. समन्वित ग्रामीण विकास एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों में तालमेल – सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक विकास योजनाएँ चला रखी हैं। यदि इनके साथ परिवार कल्याण के कार्यक्रमों को भी जोड़ दिया जाये तथा इन्हें सफलतापूर्वक प्रतिपादित करने के लिए विकास खण्डों के स्तर पर आर्थिक सहायता एवं अन्य प्रोत्साहन दिये जाएँ तो इन कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार को सन्तति निरोध के साधन व दवाएँ निःशुल्क बॉटनी चाहिए तथा नसबन्दी ऑपरेशन के लिए शिविर आयोजित कराने चाहिए।
6. कृषि एवं उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि – ग्रामीण क्षेत्रों में प्राय: यह सोचा जाता है कि कृषि के लिए अधिकाधिक जनशक्ति आवश्यक है, जिसके फलस्वरूप इन क्षेत्रों में सीमित परिवार की विचारधारा ठीक से नहीं पनप पायी है। यदि ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक कृषि यन्त्रों एवं तकनीकों को अधिकाधिक उपलब्ध कराया जाये तो कम जनशक्ति द्वारा ही कृषि की जा सकेगी तथा सीमित परिवार के प्रति लोगों में रुचि उत्पन्न होगी। उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि से भी बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलेगी, रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तथा आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
7. सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि एवं सुधार – सरकार को सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों; जैसे–पेंशन, ग्रेच्युटी एवं सेवानिवृत्त होने पर मिलने वाली सुविधाएँ आदि में इतनी वृद्धि करनी चाहिए कि सेवा-निवृत्त होने पर कर्मचारी को अपने परिवार पर बोझ बनकर न रहना पड़े। इससे आम व्यक्ति ‘सन्तान बुढ़ापे की लाठी’ जैसी विचारधारा से मुक्ति पा सकेंगे तथा उनमें सीमित परिवार के प्रति रुचि बढ़ेगी।
8. परिवार कल्याण कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी बनाया जाये – जनसंख्या वृद्धि की समस्या का वास्तविक निदान जनसंख्या को नियोजित एवं नियन्त्रित करने में निहित है। इसके लिए निम्नलिखित बातों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए –
1. आकाशवाणी एवं दूरदर्शन जैसे संचार माध्यमों द्वारा परिवार कल्याण के कार्यक्रमों को अधिकाधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।
2. बन्ध्याकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए चल चिकित्सालयों, चिकित्सा शिविरों एवं अन्य आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था व्यापक स्तर पर की जानी चाहिए।
3. सन्तति निरोध सम्बन्धी विभिन्न सामग्री को नि:शुल्क अथवा अत्यधिक सस्ते मूल्यों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
4. बन्ध्याकरण के लिए आवश्यक योग्य चिकित्सकों एवं अन्य कर्मचारियों को समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा जाना चाहिए और यदि सम्भव हो तो शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् चिकित्सकों को एक या दो वर्ष के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने के लिए बाध्य किया जाए।
9. सकारात्मक और निषेधात्मक प्रेरकों पर आधारित विवेकपूर्ण जनसंख्या नीति – जनसंख्या को नियन्त्रित रखने के लिए विवेकपूर्ण नीति को अपनाया जाना तथा समय-समय पर उसका पुनर्मूल्यांकन कर उसमें आवश्यक संशोधन करते रहना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
10. विदेशियों के आगमन पर रोक – भारत में प्रतिवर्ष अनेकानेक विदेशी आकर बस जाते हैं। प्राय: बांग्लादेश और नेपाल से अनेक लोग आकर भारत में बस गये हैं। सरकार को विदेशी लोगों के आगमन को प्रतिबन्धित कर देना चाहिए, साथ ही अनाधिकृत रूप से भारत में आकर बस गये विदेशियों को हटाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
11. जनसंख्या के धार्मिक आयाम का अध्ययन एवं वस्तुनिष्ठ निर्णय – भारत में जनसंख्या वृद्धि के मजहबी आयाम को धर्म निरपेक्षता के नाम में अनदेखा किया जाता है। अब वह समय आ गया है जब सभी धर्मावलम्बियों, राजनीतिज्ञों एवं आम व्यक्तियों को कठोर निर्णय लेने ही चाहिए।
परिवार नियोजन की विधियाँ/गर्भ निरोधक
जनसंख्या को सीमित रखने के लिए विभिन्न प्रकार से परिवारों में सन्तानोत्पत्ति की दर को नियन्त्रित करके मानव जनसंख्या की वृद्धि को कम किया जा सकता है। इस प्रकार परिवार के आकार को सीमित रखना ही परिवार नियोजन है। इसके लिए कई विधियाँ अपनायी जाती हैं। इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा गया है –
1. बन्ध्याकरण या नसबन्दी (Sterilization) – इस प्रक्रिया को वैसेक्टॉमी (vasectomy) भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में पुरुषों में वृषणकोष के ऊपरी भाग में शुक्रवाहिकाओं को काटकर इनके दोनों कटे सिरों को बाँध देते हैं। स्त्रियों में इसे सैल्पिजेक्टोमी या ट्युबेक्टोमी (salpingectomy or tubectomy) कहते हैं।
2. कण्डोम का प्रयोग (Use of Condom) – यह एक पतली झिल्ली होती है। पुरुष सम्भोग के समय इसे लिंग पर चढ़ा लेता है। इस प्रकार, वीर्य स्त्री की योनि में स्खलित न होकर कण्डोम में ही रह जाता है।
3. गर्भ निरोधक गोलियाँ (Contraceptive Pills) – इसमें ऐसे हॉर्मोन्स की गोलियाँ होती हैं जो युग्मानुजनन तथा गर्भधारण में हस्तक्षेप करते हैं। इन हॉर्मोन्स के कारण पिट्यूटरी ग्रन्थि के हॉर्मोन्स (FSH तथा LH) का स्रावण बहुत घट जाता है, जो अण्डाशयों को सक्रिय करते हैं।
4. अन्तः गर्भाशयी यन्त्र (Intrauterine Device = IUD) – इस विधि में प्लास्टिक या ताँबे या स्टील की कोई युक्ति (device) गर्भाशय में रोप दी जाती है। जितने समय तक यह युक्ति गर्भाशय में रहती है, भ्रूण का रोपण गर्भाशय में नहीं हो पाती।
5. बाधा विधियाँ (Barrier Methods) – ये विधियाँ शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुँचने से रोकती हैं। इन विधियों में योनिधानी (vaginal pouch), तनुपट (diaphragm) तथा ग्रीवा टोपी (cervical cap) का प्रयोग किया जाता है।