मरुभिद्
शुष्क आवास स्थल पर पाई जाने वाली वनस्पति को शुष्कोभिद् या मरुद्भिद् (xerophytes) कहते हैं। ऐसे वासस्थलों में जल की अत्यधिक कमी पायी जाती है। इस प्रकार के पादप लम्बी अवधि के शुष्क अनावृष्टि काल में भी जीवित रह सकते हैं। अतः इनमें जलाभाव की अत्यधिक सहिष्णुता होती है। अत्यधिक मात्रा में जल उपलब्ध होने के पश्चात् भी जल पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाता। इस प्रकार के आवास कार्यिकी दृष्टि से शुष्क (physiologically dry) होते हैं। शुष्क आवास स्थल भी निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –
1. भौतिक दृष्टि से शुष्क आवास स्थल (Physically Dry Habitat) – ऐसे स्थलों की मृदा में जल को धारण करने व इसे रोके रखने की क्षमता बहुत ही कम होती है तथा वहाँ की जलवायु भी शुष्क पाई जाती है; जैसे- मरुस्थल व व्यर्थ भूमि, चट्टानी सतह इत्यादि।
2. कार्यिकी दृष्टि से शुष्क आवास स्थल (Physiologically Dry Habitat) – ऐसे आवास स्थलों पर जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है परन्तु पौधे सुगमता से इसका अवशोषण या उपयोग नहीं कर पाते हैं; जैसे–अत्यधिक लवणीय या अम्लीय या ठण्डे स्थान। अत्यधिक लवणीय या अम्लीय अवस्था तथा जल के बर्फ रूप में रहने के कारण पौधे जल का अवशोषण नहीं कर पाते।
3. भौतिक व कार्यिकी दृष्टि से शुष्क आवास स्थल (Physically and Physiologically Dry Habitat) – कुछ स्थल ऐसे होते हैं जहाँ न तो जल धारण की क्षमता उपलब्ध होती है और न ही पौधे उसका उपयोग करने में सक्षम होते हैं अतः ऐसे आवास स्थल कार्यिकी व भौतिक दृष्टि से शुष्क आवास स्थल होते हैं। जैसे–पर्वतों की ढलानें। नागफनी के पौधे में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं जिसके आधार पर यह सिद्ध होता है कि यह एक मरुद्भिद् है।
आकारिकीय लक्षण
1. मूल (Root) – मरुभिद् पादप जलाभाव वाले स्थानों पर पाये जाते हैं अतः जल प्राप्त करने के लिए इनका मूल तन्त्र अत्यधिक विकसित होता है। इनमें पाये जाने वाले लक्षण निम्न प्रकार हैं –
(i) जड़े सुविकसित तथा भूमि में चारों तरफ फैली हुई रहती हैं। जड़े प्राय: मूसला (tap root) होती हैं तथा भूमि में गहराई तक जाती हैं और इनकी शाखाओं का मृदा में एक विस्तृत जाल फैला रहता है। अनेक मरुस्थलीय पौधों में मूल केवल भूमि की ऊपरी सतहों में ही रहती हैं परन्तु ऐसा एकवर्षीय या छोटे शाकीय पौधों या मांसल पादपों में ही होता है।
ओपेनहाइमर (Oppenheimer, 1960) के अनुसार प्रोसोपिस अल्हेगी (Prosophis athagi) की जड़े 20 मीटर तथा अकेशिया (Acacid) और टेमेरिक्स (Tamarix) के वृक्षों की जड़े भूमि में 30 मीटर की गहराई तक पहुँच जाती हैं।
(ii) जड़ों की वृद्धि दर अधिक होती है। यह 10 से 50 सेमी प्रति दिन तक की होती है। शैलोभिद् पादपों की जड़े चट्टानों के ऊपर और अन्दर भी वृद्धि करने में सक्षम होती हैं।
(iii) जड़ों में मूल रोम (root hairs) और मूल गोप (root cap) सुविकसित होते हैं जिससे ये पौधे भूमि से अधिक से अधिक जल का अवशोषण करने में सक्षम होते हैं।
(iv) इन पादपों में जड़ों की अत्यधिक वृद्धि होने के फलस्वरूप जड़ एवं प्ररोह की लम्बाई का अनुपात root and shoot ratio) 3 से 10 तक का पाया जाता है।
2. स्तम्भ (Shoot) – मरुद्भिद् पौधों के स्तम्भ में अनेक प्रकार के लक्षण पाये जाते हैं क्योंकि इसे वहाँ के वायव पर्यावरण को भी सहन करना पड़ता है। इनमें पाये जाने वाले लक्षण निम्न प्रकार हैं –
1. अधिकांश पौधों में तना छोटा, शुष्क व काष्ठीय होता है। तने के ऊपर मोटी छाल (bark) पायी जाती है।
2. पौधों में स्तम्भ वायव (aerial) या भूमिगत (underground) होता है। कुछ पौधों में शाखाएँ अधिक संख्या में होती हैं। किन्तु ये आपस में सटी हुई होती हैं, जैसे-सिट्रलस कोलोसिन्थिस (Citrullus colocynthis)
3. तने पर अत्यधिक मात्रा में बहुकोशिकीय रोम (multicellular hairs) पाये जाते हैं; जैसे- आरनिबिया (Arnebia) तथा कुछ में तने की सतह पर मोम और सिलिका का आवरण पाया जाता है, जैसे-मदार (Calotropis), इक्वीसीटम (Equesetum) आदि।
4. कुछ मरुद्भिद् के तने कंटकों में परिवर्तित हो जाते हैं; जैसे-यूफोबिया स्पलेनडेन्स (Euphorbid splendens), डूरन्टा (Duranta), सोलेनम जेन्थोकार्पम (Solanum xanthocarpum = नीली कटेली), यूलक्स (Ulex) आदि।
5. प्रायः मरुभिद् पादपों में पर्ण के छोटे हो जाने से प्रकाश संश्लेषण में कमी आ जाती है। अत: इसकी पूर्ति हेतु तना चपटा व हरे पर्ण की जैसी गूदेदार रचना में परिवर्तित हो जाता है; जैसे–नागफनी (Opurntia), रसकस (Ruscus), कोकोलोबा (Cocoloba) इत्यादि। इस रूपान्तरण को पर्णाभ स्तम्भ (phylloclade) भी कहते हैं। यूफोर्बिया स्पलेनडेन्स (Euphorbia splendens) में भी स्तम्भ मांसल तथा हरा हो जाता है। ऐसपेरेगस (Asparagus) पौधों की कक्षस्थ शाखाएँ भी हरे रंग की सूजाकार (needle like) रचनाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। इन्हें पर्णाभ पर्व (cladode) कहते हैं। इनके पर्णाभ स्तम्भ व पर्णाभ पर्व जैसी रचनाएँ पत्तियों के अभाव में प्रकाश संश्लेषण का कार्य करती हैं।