प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कबीरदास के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता कबीरदास हैं।
संदर्भ : यहाँ कबीर कहते हैं कि आलोचना करने वाले का हमें सदैव सम्मान करना चाहिए।
स्पष्टीकरण : कबीर के अनुसार हमें अपनी निंदा करनेवाले अर्थात आलोचना करनेवाले को अपने समीप रखना चाहिए। हमें उसकी कड़वी, बुरी लगनेवाली बातों से नाराज नहीं होना चाहिए। कड़वी लगने वाली बातों में हमारी भलाई की, हमारे कल्याण का भाव निहित होता है। कबीर कहते हैं ऐसे व्यक्ति को घर में जगह देनी चाहिए। उसके पास रहने से हमको यह लाभ होगा कि वह बिना पानी-साबुन के हमारे स्वभाव को स्वच्छ बना देगा अर्थात् हम उसके द्वारा निन्दा होने के डर से कोई बुरा कार्य नहीं करेंगे। आशय यह है कि निंदको की निंदा भरी बातें सुन-सुनकर हमें
आत्मसुधार करने का मौका मिलता है।