प्रसंग : प्रस्तुत वाक्य हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ की ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है। इस पाठ के लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : यह वाक्य सुजान भगत अपनी पत्नी बुलाकी को कहता है।
स्पष्टीकरण : एक भिक्षुक सुजान भगत के द्वार पर आकर भीख के लिए चिल्लाने लगा। बुलाकी दाल छाँट रही थी; इसलिए जा नहीं पाई। सुजान का बेटा अपनी माँ बुलाकी से पिता की शिकायत करता है कि वे दान पुण्य के चक्कर में घर को चौपट करने में लगे हैं। तभी सुजान देखते हैं कि भिक्षुक अब भी चिल्ला रहा है और घर से कोई भीख लेकर नहीं गया है। तब वह घर के अन्दर जाकर कठोर स्वर में बोलता है – तुम लोगों को कुछ सुनाई नहीं देता कि द्वार पर कौन घंटे भर से खड़ा भीख माँग रहा है। एक छन भगवान का काम भी तो किया करो। तब बुलाकी कहती है – तुम भगवान का काम करने को बैठे ही हो, क्या घर भर भगवान का ही काम करेगा? बुलाकी का यह उत्तर सुनकर सुजान कहतें हैं – कहाँ आटा रखा है, लाओं, मैं ही निकालकर दे आऊँ। तुम रानी बनकर बैटो।