हमारे समाज में साधु-सन्तों का सम्मान करने की परम्परा चली आ रही है। सन्त और साधु के लक्षण भी बताए गए हैं। जिस व्यक्ति में ये लक्षण विद्यमान हों वही सन्त है और आदरणीय है। कबीर भी इसी मत को स्वीकार करते हैं। किन्तु कुछ अहंकारी और जाति को महत्त्व देने वाले लोगों ने जाति विशेष के व्यक्ति को ही सन्त मानना आरम्भ कर दिया। सन्त की परीक्षा उसकी जाति से नहीं उसके ज्ञान और सदाचरण से ही हो सकती है। जाति पर बल देने वाले लोगों को कबीर ने अज्ञानी बताया है। अत: कबीर ने ऐसे लोगों पर व्यंग्य करते हुए सन्देश दिया है कि जाति तो तलवार की म्यान के समान है। जैसे तलवार मोल लेते समय उसकी म्यान की सुन्दरता पर नहीं, अपितु तलवार की श्रेष्ठता पर ध्यान दिया जाता है, उसी प्रकार साधु का सम्मान भी उसके ज्ञान के आधार पर होना चाहिए। ऊँची जाति के अज्ञानी को साधु मानना अंधविश्वास और दुराग्रह ही कहा जाएगा।