सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संग्रहीत कबीरदास के दोहों से लिया गया है। इस दोहे में कवि आदर्श त्याग के महत्व और स्वरूप का परिचय करा रहा है।
व्याख्या-कबीर कहते हैं कि मनुष्य को एक बार दृढ़ निश्चय करके अपना सब कुछ त्याग देना चाहिए। उसकी यह भावना होनी चाहिए कि उसे प्राप्त सारी वस्तुएँ और उसका शरीर भी उसका अपना नहीं है। यह सब कुछ ईश्वर का है। ईश्वर को सर्वस्व समर्पण करके मोह और अहंकार से मुक्त हो जाना ही आदर्श त्याग है।
विशेष-
(i) ‘मैं और मेरा’ की भावना का त्याग ही मनुष्य को महान् बनाता है, यह संकेत है।
(ii) ‘सब कुछ ईश्वर का है’ यह विचार रखने वाला ही सच्चा त्यागी बन सकता है। यह सन्देश व्यक्त हुआ है।
(iii) दृढ़ निश्चयी व्यक्ति ही एक बार में सर्वस्व त्याग कर सकता है, सोच-विचार में पड़ा व्यक्ति नहीं।
(iv) भाषा सरल और शैली उपदेशात्मक है।