सन्दर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीरदास के दोहों से उद्धृत है। इसमें कबीर सत्संगति की महिमा का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या-कबीर कहते हैं कि मनुष्य को सदा अच्छे व्यक्तियों या महापुरुषों की संगति करनी चाहिए। साधु से संगति कभी व्यर्थ नहीं जाती। उसका सुपरिणाम व्यक्ति को अवश्य प्राप्त होता है। लोहा काला-कुरूप होता है, किन्तु पारस का स्पर्श होने पर वह भी अति सुन्दर सोना बन जाता है। यह सत्संग का ही प्रभाव है।
विशेष-
(i) पारस और लोहे के उदाहरण द्वारा कवि ने सत्संग या साधु-संगति के चमत्कारी परिणाम की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
(ii) भाषा सरल और शैली उपदेशात्मक है।
(iii) दोहे में उदाहरण अलंकार है।