रहीम ने यह पंक्ति दुखी व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए कही है। दुख आ पड़ने पर लोगों की आँखों से बरबस ही आँसू ढुलक पड़ते हैं। ये आँसू उस व्यक्ति के मन के दुख को सब पर प्रकट कर देते है। यह स्वभाविक बात है। जिसे आप घर से निकाल दोगे वह बाहर बालों से घर का कौन सा भेद नहीं कह देगा। इस से घर-परिवार की बदनामी भी हो सकती है। अत: रहीम सीख देना चाहते हैं। कि दुख को धैर्यपूर्वक सहन कर लेना चाहिए। आँसू बहाकर अपना स्वाभिमान नहीं खोना चाहिए।