अपनी बात को कुछ अनोखे ढंग से कहना कवि की लोकप्रियता को बढ़ाने में काफी योगदान करता है। इसे ‘उक्ति-वैचिव्य’ भी कहा जाता है। इस गुण को दर्शाने वाले कई दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है।
“बंधु भए ……………….झूठे विरद कहाई॥” दोहे में कवि ने लक्ष्या शब्द शक्ति का उपयोग करते हुए, भगवान से विचित्र ढंग से अपने उद्धार की प्रार्थना की है। रघुराइ (राम) ने अनेकों पतितों का उद्धार किया है किन्तु कवि ने उन्हें चुनौती दे डाली है। वह कहनी चाहता है कि जब उस जैसे पापी का उद्धार राम ने नहीं किया तो उनका पतित-पावन कहे जाना झूठा है। इस प्रकार कवि ने भगवान राम से सीधे-सीधे अपने उद्धार की प्रार्थना न करके विचित्र ढंग अपनाया है।
इसी प्रकार “कब कौ टेरतु………..जगबाइ ।’ दोहा भी बिहारी की ‘वचन-वक्रता’ का सुंदर नमूना है। वह कहते हैं–“हे जगत् गुरु! हे जग नायक लगता है आप को भी संसार की हवा लग गई है।” कवि ने सांसारक प्रभुओं के दोनों के प्रति उपेक्षा पूर्ण व्यवहार के उजागर करने के साथ, ही एक कुशल वकील की तरह, अपने उद्धार की दलील पेश की है।
इसी प्रकार “लिखन बैठि………..चितेरे कूर॥” “कहत सबै…………बढ़त उदोतु ॥” आदि दोहे भी कवि की कथन कुशलता को दर्शा रहे हैं।