कठिन शब्दार्थ- भव बाधा = सांसारिक बाधाएँ या कष्ट। हरौ = दूर कर दो। नागरि = चतुर। सोइ = वही। जा तर = जिनके शरीर। झाँई = झलक (छाया)। परे = पड़ने से। श्याम = श्रीकृष्ण, पाप। हरित दुति = हरी कांति वाले, प्रभावहीन, प्रसन्न। : = जाते हैं।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि बिहारी के दोहों से लिया गया है। कवि ने आलंकारिक भाषा में राधाजी की स्तुति की है।
व्याख्या-कवि बिहारी कहते हैं कि वे राधा उनके सांसारिक कष्टों को दूर करें जिनके सुंदर स्वरूप की झलक मात्र पड़ने से अथवा देखने से श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं।
(श्लेष अलंकार के अनुसार अन्य अर्थ) वे चतुर राधा मेरी भव बाधाएँ दूर करें जिनकी झलकमात्र पड़ने से श्याम(पाप) प्रभावहीन हो जाते हैं। अथवा जिनके शरीर की सुनहरी कान्ति पड़ने से श्रीकृष्ण के शरीर की नीली कान्ति हरे रंग की हो जाती है।
विशेष-
(i) कवि ने राधा की स्तुति के साथ-साथ अपनी आलंकारिक शब्दावली से अर्थ में चमत्कार भी उत्पन्न किया है।
(ii) समर्थ ब्रजभाषा का प्रयोग है।
(iii) वर्णन-शैली आलंकारिक और चमत्कार प्रदर्शन युक्त है।
(iv) ‘श्याम’ तथा ‘हरित दुति’ में श्लेष अलंकार है।