कठिन शब्दार्थ- बंधु = भाई, सहायक। दीन = दुखी, असहाय। को = कौन। तायौ = उद्धार किया है। रघुराइ = भगवान राम। तूठे-तूठे = बड़े संतुष्ट या प्रसन्न। फिरत हौ = घूमते हो। बिरद = यश, प्रशंसा। कहाइ = कहलवाकर।
संदर्भ तथा प्रसंग- इस दोहे में कवि स्वयं को महान दीन और सबसे बड़ा पापी मानकर भगवान राम को उलाहना और चुनौती दे रहा है कि वह उसे तार कर दिखाएँ।
व्याख्या-कवि कहती है- हे रघुपति ! आप दीन बन्धु कहलाते हो, पतितोद्धारक कहे जाते हो। आप अपनी प्रशंसा सुन-सुन कर बड़े इतराते फिर रहे हो। सच तो यह है कि आपको अभी तक मुझ जैसे दीन और पापी से पाला नहीं पड़ा है। छोटे-छोटे दोनों और पतितों का उद्धार करके, झूठी प्रशंसा से संतुष्ट हो रहे हो। यदि मेरा उद्धार कर दो तो मैं मान लूंगा कि आप वास्तव में दीनबन्धु और पत्ति पावन हैं।
विशेष-
(i) कवि ने अपनी कथन की चतुराई से भगवान को अपना उद्धार करने की चुनौती दे डाली है। कवि चाहता है कि। भगवान उसकी चुनौती से उत्तेजित होकर उसको उद्धार कर दें और सहज ही उसका काम बन जाय।
(ii) भाषा-शैली कवि की प्रौढ़ काव्यकला का परिचय कराती है।
(iii) तूठे-तूठे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।