कठिन शब्दार्थ-सघन = घनी। सुखद = सुखदायिनी। सीतल = ठंडी। सुरभि = सुगंध। समीर = वायु। वैजातु = हो जाता है। वहै = वही, कृष्ण के समय जैसा प्रसन्न। उहि = उस। तीर = तट।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि बिहारी के दोहों से लिया गया है। बिहारी कृष्ण भक्त कवि हैं। कवि ने इस दोहे में श्रीकृष्ण की बिहार भूमि-यमुना तट के सुखदायी वातावरण का वर्णन किया है।
व्याख्या-कवि बिहारी कहते हैं-जिस यमुना के तटों पर कुंजों की सुखदायिनी छाया है और जहाँ पुष्पों की मधुर गंध से युक्त शीतल पवन चलती है, उसे यमुना तट पर पहुँचने पर आज भी व्यक्ति का मन उसी आनन्ददायी समय में जा पहुँचता है जब वहाँ श्रीकृष्ण नाना प्रकार की क्रीड़ाएँ और रासलीलाएँ किया करते थे।
विशेष-
(i) बिहारी लाल के समय तक यमुना तट का वातावरण अवश्य ही आनंददायक और कृष्ण-प्रेम उपजाने वाला रहा होगा। आज तो न कुंजें हैं, न सुगंधित समीर है। प्रदूषण के कारण बेचारी यमुना स्वयं ही बड़ी अधीर है॥
(ii) सहज, सजीव और स्वाभाविक प्रकृति चित्रण है।
(iii) भाषा सरस और शैली मनोहरता जगाने वाली है।
(iv) “सुखद, सीतल, सुरभि, समीर” में अनुप्रास की छटा है।