कठिन शब्दार्थ-सबै = सभी। बैंदी = स्त्रियों द्वारा मस्तक लगाए जाने वाली बिंदी। दिए = लगाए जाने पर। अंकु = संख्या। दस गुनौ = दस गुना। तिय-लिलार = स्त्री के मस्तक पर। अगनितु = अगनिनती, अत्यधिक। उदोतु = प्रकाश, शोभा।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि बिहारी के दोहों में से लिया गया है। कवि ने बिंदी (शून्य) के महत्त्व को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया है।
व्याख्या-गणित के अनुसार किसी भी संख्या के आगे बिंदी अर्थात् शून्य लगाने पर उसको मूल्य दस गुना हो जाता है, परन्तु सौन्दर्य शास्त्र के नियम अलग हैं। कवि के अनुसार सुन्दर नारी के मस्तक पर बिंदी लगाए जाने पर उसकी सुन्दरता या शोभा अनगिनती बढ़ जाती है। यहाँ गणित का नियम काम नहीं करता।
विशेष-
(i) दोहे में कवि ने अपनी चमत्कारपूर्ण कथन की प्रवीणता का परिचय कराया है।
(ii) भाषा साहित्यिक है और कथन शैली वचन-वक्रता (कुछ नए ढंग से बात कहना) का सुन्दर नमूना है।