कठिन शब्दार्थ-उन्नत = प्रगतिशील, ऊँचा। स्तुति = प्रशंसा। कल्पित = कल्पना द्वारा निर्मित। भय कारक = भय पैदा करने वाला। लक्षण = चिन्ह। उपासक = पुजारी॥
सन्दर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘भय’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं। जंगली लोगों में भय अधिक पाया जाता है। उनका परिचय कुछ लोगों से ही होता है। वे किसी अपरिचित द्वारा हमला होने पर उससे बचकर और भागकर अपनी रक्षा करते हैं, परन्तु सभ्य समाज में ऐसा नहीं हो पाता।
व्याख्या-लेखक कहता है कि जो मानव समाज विकसित, प्रगतिशील और ऊँचा होता है, उसमें भय से स्थायी सुरक्षा सम्भव नहीं होती। इस कारण असभ्य तथा जंगली जातियों में भय का भाव अधिक पाया जाता है। असभ्य समाज के लोग जिससे डरते हैं, उसी को अच्छा मानते हैं। वही उनके विचार से श्रेष्ठ होता है। वे उसकी पूजा करते हैं। उसी में वे धार्मिक देवी-देवताओं की कल्पना कर लेते हैं। तथा उसी की प्रशंसा भी करते हैं। जंगली लोगों में भय की भावना हो देवी-देवताओं तथा पूजनीय जनों को पैदा करती है। उनके देवता डर की भावना से ही बनते हैं। किसी आपदा से बचने के लिए वे उसी की पूजा करते हैं। डर तथा डराने वाले के प्रति आदर-सम्मान की भावना असभ्यता की पहचान है। भारत में शिक्षा का अभाव है। अत: भारत के लोग भी डरपोक बन गए हैं तथा भयभीत करने वालों की पूजा करते हैं। वे जितना आदर किसी थानेदार का करते हैं उतना किसी विद्वान व्यक्ति का नहीं करते।
विशेष-
(i) भय देवी-देवताओं के जन्म तथा पूजा का कारण है।
(ii) भय के कारण भय पैदा करने वाले की पूजा तथा सम्मान करना असभ्यता है।
(iii) भाषा विषयानुकूल तथा बोधगम्य है।
(iv) शैली विचारात्मक है।