कठिन शब्दार्थ-राह = रास्ता। जादू = आकर्षण। चुम्बक = लोहे को आकर्षित करने वाली धातु। मर्यादा = सीमा। असर = प्रभाव। निमन्त्रण = बुलावा॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘बाजार दर्शन’ शीर्षक निबन्ध से अवतरित है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं। बाजार में प्रबल आकर्षण है। उसमें प्रदर्शित वस्तुएँ ग्राहकों को खरीदारी के लिए आकर्षित करती हैं। इस आकर्षण से बचने का उपाय अपनी आवश्यकता का ठीक-ठीक ज्ञान होना है। इसके अभाव में मनुष्य को इच्छाएँ घेर लेती हैं और उसको दुःख देती हैं।
व्याख्या-लेखक कहता है कि बाजार में आकर्षण होता है। वह आँखों के रास्ते लोगों को आकर्षित करता है। बाजार में प्रदर्शित सुन्दर वस्तुओं को देखकर उनको खरीदने की इच्छा पैदा होती है। यह आकर्षण सुन्दर रूप का है। सुन्दर चीजें आकर्षक होती हैं। जिस प्रकार चुम्बक लोहे को अपनी ओर खींचता है, उसी प्रकार बाजार लोगों को आकर्षित करता है। लोहा चुम्बक से प्रभावित होता है। अन्य वस्तुएँ नहीं। उसी प्रकार बाजार के आकर्षण की भी सीमा होती है। जिनके पास जेब में खूब पैसा होता है तथा वे यह नहीं जानते कि उनकी जरूरतें क्या हैं, वे बाजार के जाल में फंस जाते हैं। लोग विज्ञापनों से प्रभावित होते हैं। वे बाजार के जादुई प्रभाव से बच नहीं पाते। वे अनियन्त्रित होकर बिना सोच-विचारे बाजार में चीजें खरीदने में जुट जाते हैं।
विशेष-
1. बाजार का आकर्षण किसी जादू के समान होता है।
2. बाजार का जादू उन पर चलता है जिनके पास खूब पैसा होता है तथा जिनको अपनी जरूरतों का ठीक-ठीक ज्ञान नहीं होता। वे ही अनावश्यक चीजें खरीदते हैं।
3. भाषा बोधगम्य है। वह विषयानुकूल है। शब्द-चयन आवश्यकता के अनुरूप है। मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है।
4. शैली विचार-विवेचनात्मक है।