कठिन शब्दार्थ-बे मुकुट = बिना मुकुट वाले। गोपाल = ग्वाला। हमजोली = साथी। हमराज = मन की बातें जानने वाला। ताज = राज्य, सत्ता। पुष्पोद्यान = बगीची।
सन्दर्भ व प्रसंग-उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘मजदूरी और प्रेम’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। इसके लेखक अध्यापक पूर्णसिंह हैं। लेखक किसानों की श्रमशीलता की प्रशंसा करता है। किसानों में दया, वीरता और प्रेम के गुण होते हैं। ये गुण अन्य लोगों में नहीं पाये जाते॥
व्याख्या-लेखक कहता है कि गुरु नानक देव का यह कथन ठीक ही है कि ईश्वर भोले-भाले भावुक लोगों को ही प्राप्त होता है। किसान स्वभाव से भोला होता है। ईश्वर उसको साक्षात् दर्शन देता है। किसान का जीवन सादा तथा प्राकृतिक है। उसकी घास-फूस से बनी झोंपड़ी से सूर्य और चन्द्रमा की किरणें निकलकर उसके बिस्तर पर गिरती हैं। युवा होते हुए भी किसान स्वभाव से साधु जैसा होता है। वह गायों का पालन करने वाला है। किन्तु श्रीकृष्ण के समान उसके सिर पर मुकुट सुसज्जित नहीं है। लेखक का सिर उसको देखकर झुक जाता है। लेखक को किसान किसी फकीर के समान सरल प्रतीत होता है। उसके सिर और पैर नंगे हैं। उसकी कमर में एक लँगोटी, सिर पर टोपी, कंधे पर काला कम्बल तथा हाथ में लम्बी लाठी है। वह गायों का दोस्त है, बैलों का साथी है, पक्षियों के मन की बातें जानने वाला है, वह राजा-महाराजाओं को भोजन देने वाला तथा सम्राटों को सत्ता प्रदान करने वाला है। वह भूखे-नंगे, गरीबों का पालन-पोषण करने वाला है। वह समाजरूपी फूलों के बगीचे का माली है तथा खेतों का स्वामी है।
विशेष-
(i) किसान का जीवन सरलता तथा परोपकार से भरा हुआ है।
(ii) वह गरीबों से लेकर राजा-महाराजाओं तक का पोषण करता है।
(iii) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है। वाक्य छोटे हैं।
(iv) शैली सजीव, चित्रात्मक तथा भावात्मक है।