कठिन शब्दार्थ- नीरस = बेस्वाद। मशीन = निर्जीव यंत्र। रस = स्वाद। प्रियतमा = सबसे अधिक प्रिय स्त्री, पत्नी। प्रेयसी = प्रिया। प्रेमामृत = प्रेम का अमृत, अमृत जैसा मधुर प्रेम। पान करना = पीना। गदगद = आनन्दित। रसभरी = आनन्ददायिनी। दिलभरी = मन को प्रसन्नता देनेवाली।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘मजदूरी और प्रेम’ शीर्षक निबन्ध से उधृत है। इसके लेखक मरदार पृर्ण सिंह हैं।
लेखक कहता है कि हाथ से किए गए काम में कर्ता का प्रेम तथा पवित्रता मिलकर उसको रोचक बना देते हैं। होटल में बने भोजन की तुलना में घर में बना भोजन अधिक स्वादिष्ट होता है।
व्याख्या-लेखक कहता है कि होटल में जो खाना मिलता है, उसमें वह स्वाद नहीं होता जो घर के बने भोजन में होता है। होटल में काम करने वाला आदमी निर्जीव मशीन की तरह काम करता है। उसमें मनुष्य के मन का प्रेम तथा सरसता नहीं होती। किन्तु जब लेखक की प्यारी पत्नी घर में भोजन बनाती है तो वह रूखा-सूखा होने पर भी अत्यन्त स्वादिष्ट लगता है। वह मीलों दूर स्थित कुएँ या नदी से घड़े में पानी भरकर, प्रेमपूर्वक उसको अपने कंधे पर उठा कर लाती है। उस पानी में उसके हृदय का प्रेम मिल जाता है। लाल घड़े के उस पानी को पीने से लेखक को अपनी प्रिया के अमृत के समान मीठे प्रेम का आनन्द प्राप्त होता है। वह साधारण पानी नहीं उसके प्रेम का मधुर अमृत होता है। प्रेयसी के प्रेम से भरे उस जल के प्याले की मादकता शराब से भी ज्यादा होती है। प्रेम जीवन को आनन्द से भर देता है। लेखक की प्रियतमा उसको अन्न-जल देकर जो सेवा करती है, उसमें उसके मन का प्रेम, सरसता तथा समर्पण भरा होता है। होटल के बने भोजन का मूल्य चुकाया जा सकता है किन्तु प्रेयसी की प्रेम भरी सेवा अमूल्य होती है।
विशेष-
(i) होटल का बना भोजन मशीनी और बेस्वाद तथा घर में बना भोजन स्वादिष्ट होता है।
(ii) घर में पत्नी द्वारा बनाए गए भोजन तथा लाये गए जल में उसका सरस प्रेम मिलकर उसको अत्यंत स्वादिष्ट बना देता है।
(iii) भाषा सरस, सरल तथा विषयानुरूप है।
(iv) शैली सजीव, चित्रात्मक तथा भावात्मक है।