कठिन-शब्दार्थ-साँझ = शाम। पड़कर = लेटकर। चौकस = सही-सलामत। संगीन = गम्भीर। पाया = तय किया।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सृजन’ में संकलित “मैं और मैं” शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हैं।
पाँच दोस्त थे। काम कुछ करते नहीं थे। दोनों वक्त खाना और पीने को भाँग उनको जरूर चाहिए थी। एक दिन उनकी पत्नियों ने बुरा-भला कहा, तो लज्जित होकर उन्होंने परदेश जाकर कुछ कामधाम करने का विचार किया।
व्याख्या-पाँचों दोस्त परदेश के लिए चले। रास्ते में चलते हुए आपस में विचार किया कि सँभल कर चलना है। ऐसा न हो कि शाम को गहरा अँधेरा हो जाये और कोई खो जाये। यदि ऐसा हुआ, तो उसकी पत्नी को क्या बतायेंगे? कुछ दूर जाने पर रात हो गई, तो एक मंदिर में लेट गए और सो गए। सुबह उठे, तो तय किया कि पहले गिनती करके देख लें कि सब बात ठीक-ठाक है और पाँचों दोस्त सही सलामत हैं।
उनमें से एक ने गिना तो वे चार थे। दोबारा गिनने पर भी चार ही थे। वह तेज आवाज में बोला-हम घर से चले थे, तो पाँच थे। रास्ते में ही चार रह गए हैं, तब दूसरे दोस्त ने सबकी गिनती की। तब भी वे चार ही थे। तीसरे ने गिना तभी चार ही थे। अब बात गम्भीर रूप ले चुकी थी। अब उन्होंने तय किया कि घर वापस चला जाए। संभव है एक आदमी रात को ही घर लौट गया हो।
विशेष-
(i) पाँचों दोस्त परदेश के लिए चल दिए और एक मंदिर में रात बिताई।
(ii) सवेरा होने पर एक ने सबको गिना, तो उनकी संख्या चार थी।
(iii) भाषा सरल तथा रोचक है। ‘चलियो’, ‘खोया जाये’, ‘तब पाया’ आदि पर लौकिक बोली का प्रभाव है।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा चुटीली है।