कबीर निर्गुण भक्ति धारा के कवि हैं। उनकी मान्यता है कि ब्रह्म सर्वव्यापक और तेज स्वरूप है जो निराकार है, गुणरहित है, उसका वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है। कबीर ने इस पंक्ति द्वारा यही बात इस पंक्ति में कही है। यदि कोई ब्रह्म के स्वरूप के बारे में बताना चाहेगा तो दूसरी कोई ऐसी वस्तु या स्वरूप नहीं है, जिसके समान ब्रह्म को बताया जा सके। अत: परमात्मा के स्मरण, चिंतन और भक्ति से उसका जो भी रूप साधक के अंत:करण में प्रकट हो, वही परब्रह्म का प्रामाणिक रूप है।