रहीम हिन्दी के एक प्रसिद्ध कवि हैं। वह बहुभाषाविद् कवि तथा विद्वान पुरुष थे। रहीम ने हिन्दी में नीति तथा भक्ति सम्बन्धी साहित्य की रचना की है। रहीम ने अपना साहित्य हिन्दी की तीन उपभाषाओं ब्रज, अवधी तथा खड़ी बोली में रचा है। रहीम ने जो दोहा लिखे हैं, उनमें उन्होंने सरस, मधुर, प्रवाहपूर्ण तथा साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इसमें तत्सम शब्दों का प्रधान है। यत्र-तत्र कुछ मुहावरों का प्रयोग ही सफलतापूर्वक हुआ है। ‘भीर परे ठहराय’ में भीर पड़ना अर्थात् संकट आना मुहावरे का प्रयोग हुआ है। रहीम ने अपने ‘बरवै’ छंदों की रचना के लिए अवधी भाषा को अपनाया है। उनकी अवधी सरल तथा बोधगम्य है। तत्सम प्रधानता के कारण वह आसानी से समझ में आ जाती है। हिन्दी की तीसरी उपभाषा खड़ी बोली है। यद्यपि उस समय खड़ी बोली का प्रयोग पद्य-रचना में नहीं होता था किन्तु रहीम ने अपने ग्रन्थ ‘मदनाष्टक’ की रचना के लिए खड़ी बोली को ही अपनाया है। रहीम की खड़ी बोली भी उनकी ब्रजभाषा तथा अवधी के समान तत्सम शब्दावली युक्त होने के कारण सरस और सुबोध है।