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अपनी अभिक्रियाओं में सल्फर डाइऑक्साइड तथा डाइड्रोजन परॉक्साइड ऑक्सीकारक तथा अपचायक दोनों ही रूपों में क्रिया करते है जबकि ओजोन तथा नाइट्रिक अम्ल केवल ऑक्सीकारक के रूप में ही क्यों ?

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`SO_(2)` में S की ऑक्सीकरण संख्या +4 होती है S अपनी अभिक्रियाओं में -2 और +6 के बीच की कोई भी ऑक्सीकरण संख्या दर्शा सकता है । अतः `SO_(2)` में S की ऑक्सीकरण संख्या घट सकती है बढ़ भी सकती है अर्थात इसका ऑक्सीकरण तथा अपचयन दोनों संभव है । इस कारण `SO_(2)` ऑक्सीकारक तथा अपचायक दोनों अभिकर्मकों की तरह व्यवहार करती है । `H_(2)O_(2)` की स्थिति भी सामान प्रकार की है । `H_(2)O_(2)` में O की ऑक्सीकरण अवस्था -1 होती है |
ऑक्सीजन -2 और 0 (शून्य) के बीच की कोई भी ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है (+2 भी जब F से जुड़ा होता है) अतः `H_(2)O_(2)` में ऑक्सीजन अपनी ऑक्सीकरण संख्या घटा बड़ा सकता है । इस कारण `H_(2)O_(2)` ऑक्सीकारक तथा अपचायक दोनों अभिकर्मकों की तहत करता है । `O_(3)` में ऑक्सीजन की ऑक्सीकरण अवस्था शून्य है । यह अपनी ऑक्सीकरण अवस्था को -1 तथा -2 तक घटा सकता है परन्तु अपनी ऑक्सीकरण अवस्था को बड़ा नहीं सकता । अतः `O_(3)` केवल एक ऑक्सीकारक की तहत व्यवहार करती है । `HNO_(3)` की स्थिति भी सामान प्रकार की है में की ऑक्सीकरण अवस्था +5 होती है, जो N की अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था है । अतः N केवल अपनी ऑक्सीकरण अवस्था घटा सकता है । इस कारण `HNO_(3)` केवल ऑक्सीकारक की व्यवहार करता है

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