(i) धारावाही कुण्डली का चुम्बकीय आघूर्ण (M), फेरों की संख्या N, धारा i तथा कुण्डली के क्षेत्रफल A की गुणा के बराबर होता है। इस प्रकार
M = N i A
प्रश्नानुसार, N = 20, I = 3.0 ऐम्पियर
तथा `A=pir^(2)=3.14xx(4.0xx10^(-2)" मीटर")^(2)`
`=5.0xx10^(-3)"मीटर"^(2)`
`therefore M = 20xx3.0` ऐम्पियर `xx(5.0xx10^(-3)ऐम्पियर)`
=0.30 ऐम्पियर- `"मीटर"^(2)`|
(ii) जब किसी धारावाही कुण्डली को एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में `vec(B)` इस प्रकार लटकाते है कि कुण्डली के तल पर केन्द्रीय अभिलम्ब (कुण्डली की अक्ष) क्षेत्र `vec(B)` की दिशा से `theta` कोण बनाता है, तब इस पर लगने वाले बल-युग्म का मान
`tau=M B sin theta`
जब कुण्डली का तल चुम्बकीय क्षेत्र `vec(B)` के समान्तर है अर्थात इसकी अक्ष `vec(B)` क्षेत्र के लम्बवत है (`theta=90^(@)` अथवा `sin theta=1`), तब बल-युग्म अधिकतम `(tau_(max))` होता है। इस प्रकार
`tau_(max)=M B`
= 0.30 ऐम्पियर-`"मीटर"^(2)xx0.50` न्यूटन/ (ऐम्पियर-मीटर)
=0.15 न्यूटन-मीटर।
(iii) चुम्बकीय क्षेत्र में लटकी धारावाही कुण्डली को `theta` कोण घुमाने में किया गया कार्य
`W = M B(1-cos theta)`
यदि कुण्डली को `180^(@)` घुमाया जाये, तब किया गया कार्य
`W=M B (1-cos 180^(@))`
`=2 M B = 2 xx 0.15` जूल = 0.30 जूल।