मानव वैदिककाल से ही, अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रकृति से कुछ न कुछ प्राप्त करता ही रहा है। परन्तु विगत कुछ वर्षों में मनुष्य ने प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग किया है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन असंतुलित हो गया है, जिसके फलस्वरूप अनेक जातियाँ विलुप्त हो गई हैं तथा अनेक विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं। यही स्थिति यदि भविष्य में जारी रहती है, तो मनुष्य जाति का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। अत: वर्तमान में जैव - विविधता के संरक्षण की ओर ध्यान केन्द्रित किया जाना परम आवश्यक है।