मानव के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए खेल अत्यंत आवश्यक अंग है। खेलों से मानसिक थकावट दूर होती है। शरीर तंदुरुस्त रहकर, जीवन परिश्रमी बनता है। खेलों को खेल ही समझने चाहिए | खेल ही जीवन नहीं समझना है।
हर खेल में दो पक्ष ज़रूर होते हैं। एक पक्ष जीतता है तो दूसरा हार जाता है। यह तो अनिवार्य है। तभी खेल का फल मालूम होता है। हार-जीत दोनों खेल का एक हिस्सा है। इन दोनों का समान अस्तित्व रहता है। खेल में वैर भाव नहीं रखना चाहिए। एक बार हारेगा तो अगली बार जीतेगा | जीतने की कोशिश करनी है। हार या जीत खिलाडियों की गलतियों, कमजोरियों, लिये जानेवाले निर्णयों आदि अनेक मुख्य विषयों पर आधारित होते हैं। अपनी हार को असमर्थता और विपक्षी की सफलता को समर्थता नहीं समझनी चाहिए।
खेल तो खेल ही है । उसे प्रमे से चाव से खेलना चाहिए। इस बार हार होगी तो विफल न होकर अगली बार ज़रूर जीत होगी, ऐसी भावना रखकर कोशिश करनी है। वही सच्चा खिलाडी का महान गुण है। सच्चा खिलाडी जीते हुए पक्षवालों के खेल को समझने की कोशिश करेगा। उनकी प्रशंसा ज़रूर करेगा। अपनी हार का कारण क्या है? इस पर विचार करेगा। इस तरह अपनी हार या जीत से कुछ न कुछ ज़रूर सीखनेवाला ही सच्चा खिलाडी है।