साहचर्य का अर्थ एवं परिभाषा
स्मृति की प्रक्रिया में साहचर्य (Association) का विशेष महत्त्व है। साहचर्य से स्मरण करने की प्रक्रिया में पर्याप्त सहायता प्राप्त होती है। साहचर्य में किन्हीं दो विषय-वस्तुओं के पारस्परिक सम्बन्ध को ध्यान में रखा जाता है तथा उस सम्बन्ध के आधार पर स्मृति की प्रक्रिया को सुचारु रूप प्रदान किया जाता है। व्यवहार में हम प्राय: देखते हैं कि किसी एक व्यक्ति या वस्तु को देखकर किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु की याद आ जाती है तो याद आने की यह क्रिया साहचर्य के कारण ही होती है। उदाहरण के लिए दो सदैव साथ-साथ रहने वाली सहेलियों में से किसी एक को देखकर दूसरी की
भी याद आ जाना साहचर्य का ही परिणाम है। इसी प्रकार एक विधवा को देखकर उसके स्वर्गीय पति की याद आ जाना भी साहचर्य का ही परिणाम है। इस प्रकार स्पष्ट है कि स्मृति की प्रक्रिया में साहचर्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। साहचर्य के अर्थ को जान लेने के उपरान्त साहचर्य को परिभाषित करना भी आवश्यक है।
प्रो० बी०एन०झा ने साहचर्य को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “विचारों का साहचर्य एक विख्यात सिद्धान्त है, जिसके द्वारा कुछ विशिष्ट सम्बन्धों के कारण एक विचार दूसरे से सम्बन्धित हाने की प्रवृत्ति रखता है।”
साहचर्य की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि साहचर्य मस्तिष्क में स्थापित होने वाली एक प्रक्रिया है। वास्तव में, व्यक्ति के मस्तिष्क में एक विशेष क्षेत्र होता है, जिसे साहचर्य-क्षेत्र कहते हैं। मस्तिष्क का यह क्षेत्र व्यक्ति के विभिन्न संस्कारों को परस्पर जोड़ने का कार्य करता है। इस प्रकार विभिन्न संस्कारों या विचारों का परस्पर सम्बद्ध होना ही साहचर्य है।
साहचर्य के प्राथमिक एवं गौण नियम
साहचर्य अपने आप में एक व्यवस्थित प्रक्रिया है। विचारों में साहचर्य की स्थापना कुछ नियमों के आधार पर होती है। साहचर्य की प्रक्रिया का सम्बन्ध अनेक नियमों से है। इन समस्त नियमों को दो वर्गों में बाँटा जाता है। ये वर्ग हैं-क्रमशः साहचर्य के प्राथमिक नियम तथा साहचर्य के गौण नियम। साहचर्य के दोनों वर्गों के नियमों का सामान्य विवरण निम्नलिखित है–
(1) साहचर्य के प्राथमिक नियम– साहचर्य की स्थापना में सहायक मुख्य नियमों को साहचर्य के प्राथमिक नियम कहा गया है। कुछ विद्वानों ने साहचर्य के इन नियमों को साहचर्य के मौलिक नियम माना है। साहचर्य के चार प्राथमिक नियमों का उल्लेख किया गया है। ये नियम हैं-समीपता का नियम, सादृश्यता का नियम, विरोध का नियम तथा क्रमिक रुचि का नियम। साहचर्य के इन चारों प्राथमिक नियमों का सामान्य विवरण निम्नलिखित है
(i) समीपता का नियम– साहचर्य का प्रथम प्राथमिक नियम है–‘समीपता का नियम’। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है; साहचर्य के इस नियम में विषय-वस्तुओं की स्वाभाविक समीपता को साहचर्य स्थापना का आधार माना जाता है। इस नियम के अनुसार सामान्य रूप से एक-दूसरे के समीप पायी जाने वाली विषय-वस्तुओं का ज्ञान हमें एक साथ प्राप्त होता है। वास्तव में, एक साथ पायी जाने वाली विषय-वस्तुओं में समीपता का साहचर्य सम्बन्ध स्थापित हो जाता है तथा इसी सम्बन्ध के आधार पर हम उनका ज्ञान प्राप्त करने लगते हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि समीपता भी दो प्रकार की हो सकती है अर्थात् कालिक समीपता तथा देशिक समीपता। कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो एक के बाद एक क्रमिक रूप से प्रस्तुत होती हैं, इन घटनाओं में पायी जाने वाली समीपता को कालिक समीपता कहते हैं। उदाहरण के लिए, बादल के गरजने तथा वर्षा होने में कालिक समीपता पायी जाती है। इसी प्रकार कुछ वस्तुओं में देशिक समीपता भी पायी जाती है; जैसे कि कप एवं प्लेट या मेज एवं कुर्सी में पायी जाने वाली समीपता। दोनों ही प्रकार की समीपता के कारण सम्बन्धित विषय-वस्तुओं में साहचर्य की स्थापना की जाती है।
(ii) सादृश्यता का नियम– साहचर्य का एक प्राथमिक नियम ‘सादृश्यता का नियम’ कहलाता है। इस नियम के अनुसार कुछ विषय-वस्तुओं में पायी जाने वाली सादृश्यता के कारण उनमें साहचर्य की स्थापना हो जाती है। वास्तव में, जब हम दो समान दिखाई देने वाली वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण करते हैं तो हमारा मस्तिष्क उन वस्तुओं के बीच में एक प्रकार का सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। इस प्रकार की सम्बन्ध-स्थापना के उपरान्त यदि व्यक्ति उन दोनों वस्तुओं में से किसी एक को कहीं देखता है तो उसे तुरन्त उसके सदृश अन्य वस्तु की भी याद आ जाती है। हम जानते हैं कि जुड़वा बहनों अथवा भाइयों में अत्यधिक सादृश्यता पायी जाती है। इस स्थिति में उनमें से किसी एक को देखते ही दूसरी बहन की याद आ ही जाती है। यह क्रिया सादृश्यता का ही परिणाम है। रूप की सादृश्यता के अतिरिक्त प्रायः नामों की सादृश्यता भी स्मृति का एक कारण बन जाया करती है।
(iii) विरोध का नियम–साहचर्य को एक अन्य प्राथमिक नियम विरोध के नियम के नाम से जाना जाता है। इस नियम के अनुसार सम्बन्धित वस्तुओं में पाया जाने वाला स्पष्ट विरोध भी प्रायः साहचर्य-स्थापना का कारण बना जाता है। प्रायः गोरे एवं काले रंगों, सुख एवं दु:ख के भावों, मिलन एवं वियोग आदि में पाये जाने वाले विरोध के कारण उनमें एक प्रकार का साहचर्य सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। विरोध के नियम के अनुसार, परस्पर विरोधी गुण-धर्म वाले एक तत्त्व के प्रत्यक्षीकरण के साथ-ही-साथ दूसरे तत्त्व की भी याद आ जाती है।
(iv) क्रमिक रुचि का नियम- साहचर्य का एक अन्य प्राथमिक नियम है ‘क्रमिक रुचि का नियम’। इस नियम के अनुसार व्यक्ति की रुचि भी उसकी स्मृति को प्रभावित करती है। रुचि के अनुसार प्राप्त होने वाले अनुभव परस्पर सम्बद्ध हो जाते हैं तथा इन अनुभवों से व्यक्ति के मानसिक संस्कार निर्मित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए-शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वाला व्यक्ति यदि किसी राग का नाम सुनता है तो उसे तुरन्त उस राग के गायक का नाम याद आ जाता है।
उपर्युक्त विवरण द्वारा साहचर्य के चारों प्राथमिक नियमों का परिचय प्राप्त हो जाता है। हम कह सकते हैं कि साहचर्य के इन चारों प्राथमिक नियमों में पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा ये नियम एक-दूसरे पर किसी-न-किसी रूप में आश्रित भी हैं।
(2) साहचर्य के गौण नियम- साहचर्य के द्वितीय वर्ग के नियमों को साहचर्य के गौण नियम कहा गया है। साहचर्य के गौण नियम पाँच हैं—प्राथमिकता का नियम, नवीनता का नियम, पुनरावृत्ति का नियम, स्पष्टता का नियम तथा प्रबलता का नियम। साहचर्य के इन गौण नियमों का सामान्य परिचय निम्नलिखित हैं
(i) प्राथमिकता का नियम- प्राथमिकता के नियम के अनुसार, हमारे स्मृति पटल पर जिस विषय-वस्तु के संस्कार सर्वप्रथम पड़ते हैं, वे सामान्य रूप से प्रबल तथा अधिक स्थायी होते हैं। इसी नियमको आधार मानते हुए कहा जाता है कि बाल्यावस्था में याद किये गये विषयों की स्मृति अधिक स्पष्ट स्थायी होती है।
(ii) नवीनता का नियम– साहचर्य के इस नियम के अनुसार, हम जिस विषय के निकट भूतकाल में सीखते या याद करते हैं, उसकी धारण प्रबल होती है। यही कारण है कि देखी गयी फिल्म का अन्त प्रायः याद रहता है।
(iii) पुनरावृत्ति का नियम– साहचर्य के एक गौण नियम को पुनरावृत्ति का नियम कहा गया है। इस नियम की मान्यता यह है कि यदि किसी विषय को सीखने या याद करने में अधिक आवृत्ति होती अर्थात् उसे बार-बार दोहराया जाता है तो उस विषय की स्मृति उत्तम एवं स्थायी होती है।
(iv) स्पष्टता का नियम- इस नियम के अनुसार अस्पष्ट विषय की तुलना में स्पष्ट विषय की धारणा प्रबल होती है तथा ऐसा विषय अधिक दिनों तक याद रहता है।
(v) प्रबलता का नियम- कुछ विषयों का सम्बन्ध किसी प्रबल संवेग से होता है। इन विषयों के गहरे संस्कार हमारे मस्तिष्क पर पड़ जाते हैं तथा इन विषयों को अधिक समय तक याद रखा जाता है।