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स्मृति अर्थात् धारणा के मापन के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। या स्मृति मापन की विधियाँ बताइए।

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यह सत्य है कि सभी व्यक्तियों की स्मरण-क्षमता समान नहीं होती। कुछ व्यक्ति सीखे गये विषयों को ज्यों-का-त्यों याद रखते हैं, जबकि कुछ व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाते। वास्तव में, इस भिन्नता का कारण व्यक्तियों की धारणा (Retention) शक्ति का भिन्न-भिन्न होना है। प्रबल धारणा वाले व्यक्ति सीखे गये विषय को अधिक समय तक ज्यों-का-त्यों याद रखते हैं। इससे भिन्न यदि व्यक्ति की धारणा-क्षमता कमजोर होती है तो वह सम्बन्धित विषय को अधिक समय तक याद नहीं रख पाता है। ऐसे व्यक्तियों की स्मृति प्रायः उत्तम भी नहीं होती है। स्मृति के मापन के लिए धारणा को मापने करना ही अभीष्ट होता है। स्मृति अथवा धारणा के मापन के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियों का विवरण निम्नलिखित है
स्मृति अर्थात् धारणा के मापन की विधियाँ स्मृति के मापन के लिए अर्थात् धारणा-मापन के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियों को अपनाया जाता है।

(1) धारणामापन की पहचान विधि- धारणा-मापन के लिए अपनायी जाने वाली एक मुख्य विधि है-‘पहचान विधि’ (Recognition Method)। इस विधि द्वारा धारणा के मापन के लिए सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा स्मरण किये गये विषयों में कुछ अन्य ऐसे विषयों को भी सम्मिलित कर दिया जाता है, जिनसे उनको पूर्व-परिचय नहीं होता। इसके उपरान्त व्यक्ति के सम्मुख नये जोड़े गये विषयों तथा पूर्व-परिचित विषयों को सम्मिलित रूप से प्रस्तुत किया जाता है।
इन समस्त विषयों को एक साथ प्रस्तुत करने के उपरान्त व्यक्ति को कहा जाता है कि वह उनमे से पूर्व-परिचित विषयों को पहचान कर बताये। सामान्य रूप से बाद में सम्मिलित किये गये विषय भी पूर्व-परिचित विषयों से मिलते-जुलते ही होते हैं। इस परीक्षण के अन्तर्गत यह जानने का प्रयास किया जाता है कि व्यक्ति कुल विषयों में सम्मिलिते पूर्व-परिचित विषयों में से कुल कितने विषयों को ठीक रूप में पहचान लेता है। इन निष्कर्षों के आधार पर व्यक्ति की धारणा को मापन कर लिया जाता है। धारणा के मापन के लिए निम्नलिखित सूत्र को अपनाया जाता है

(2) धारणा- मापन की पुनःस्मरण विधि- स्मृति (धारणा) मापन की एक अन्य विधि है। ‘पुन:स्मरण विधि।’ इस विधि को धारणा-मापन की अन्य विधियों की तुलना में एक सरल विधि माना जाता है; अतः यह विधि अधिक लोकप्रिय भी है। धारणा-मापन की इस विधि को सक्रिय पुनःस्मरण विधि भी कहा जाता है। धारणा-मापन की इस विधि के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति को किसी विषय को याद करने के लिए कहा जाता है तथा याद कर लेने के कुछ समय उपरान्त याद किये गये विषय को सुनाने के लिए कहा जाता है। अब यह देखा जाता है कि वह व्यक्ति पहले याद किये गये विषय के कितने भागों को ज्यों-का-त्यों सुना पाया। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति को 20 भिन्न-भिन्न देशों की राजधानियों के नाम याद करवाये गये तथा एक सप्ताह के उपरान्त उसे यही नाम सुनाने के लिए कहा गया, परन्तु वह व्यक्ति केवल 12 देशों की राजधानियों के ही नाम सुना पाया। इस स्थिति में कहा जाएगा कि व्यक्ति की धारणा 60% है।

(3) धारणा-मापन की पुनर्रचना विधि- धारणा के मापन के लिए अपनायी जाने वाली एक विधि ‘पुनर्रचना विधि’ भी है। इस विधि के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति को पहले कोई एक विषय दिया जाता है जिसे समग्र रूप से सीखना या स्मरण करना होता है। व्यक्ति अभीष्ट विषय को भली-भाँति याद कर लेता है। व्यक्ति द्वारा विषय को समग्र रूप से याद कर लेने के उपरान्त उसके सम्मुख उसी विषय को मूल क्रम को भंग करके विभिन्न अंशों में अस्त-व्यस्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसके उपरान्त व्यक्ति को कहा जाता है कि वह इस प्रकार के अक्रमित रूप से उपलब्ध सामग्री को उसके मूल रूप में व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करे। वह अपनी धारणा के आधार पर विषय को व्यवस्थित करता है। व्यक्ति जिस अनुपात में विषय को मूल रूप में प्रस्तुत करने में सफल होता, उसी के आधार पर धारणा की माप कर ली जाती है।

(4) धारणा-मापन की बचत विधि- धारणा (स्मृति) मापन के लिए अपनायी जाने वाली एक विधि को ‘बचत, विधि’ (Saving Method) के नाम से जाना जाता है। धारणा-मापन की इस विधि को पुनः अधिगंम विधि’ भी कहा जाता है। धारणा के मापन के लिए इस विधि के अन्तर्गत प्रथम चरण में व्यक्ति को चुने गये विषय को भली-भाँति स्मरण करवाया जाता है। इस प्रकार से विषय को याद करने में व्यक्ति द्वारा किये गये कुल प्रयासों को लिख लिया जाता है। द्वितीय चरण कुछ समय (काल) उपरान्त प्रारम्भ किया जाता है। इस चरण में व्यक्ति को वही विषय पुन:स्मरण करने के लिए दिया जाता है। इस चरण में अभीष्ट विषय को भली-भाँति स्मरण करने के लिए जितने प्रयास करने पड़े हों उन्हें भी लिख लिया जाता है। यह स्वाभाविक है कि द्वितीय चरण में उसी विषय को याद करने में कम प्रयास करने पड़ते हैं। दोनों चरणों में किये गये प्रयासों के अन्तर को ज्ञात करके लिख लिया जाता है। इन समस्त तथ्यों के आधार पर धारणा को मापन कर लिया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित सूत्र को अपनाया जाता है

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