आधुनिक युग में स्थानीय निकायों का विशेष महत्त्व है। साधारण रूप से स्थानीय प्रकृति के कार्यों को स्थानीय संस्थाओं को सौंप देने से राज्य सरकारें अपने दायित्वों से मुक्त हो जाती हैं। स्थानीय आवश्यकताओं के कार्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा अधिक कुशलतापूर्वक सम्पन्न किये जा सकते हैं। स्थानीय संस्थाओं के सीमित कार्यक्षेत्र होने पर भी उनके दायित्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। स्थानीय संस्थाओं की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं
(अ) कर स्रोत,
(ब) गैर-कर स्रोत।
(अ) कर-स्रोत – स्थानीय संस्थाओं को कर से पर्याप्त आय प्राप्त होती है, जो कि कुल आय का 70% भाग तक होती है। करों में निम्नलिखित दो प्रकार के कर आते हैं
⦁ स्थानीय संस्थाओं द्वारा लगाये गये कर।
⦁ राज्य सरकारों द्वारा लगाये व वसूल किये गये करों में स्थानीय संस्थाओं का भाग।
(ब) गैर-कर स्रोत – गैर-कर स्रोतों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जा सकता है
⦁ सहायता अनुदान,
⦁ ऋण तथा उपादान तथा
⦁ अन्य साधन।
स्थानीय निकायों में नगर निगम, नगरपालिकाएँ, छावनी बोर्ड, अनुसूचित क्षेत्र समिति, नगर क्षेत्र समिति, जिला परिषद् और ग्राम पंचायतों को शामिल किया जाता है।
स्थानीय संस्थाओं की आय के साधन:
⦁ कर स्रोत आय तथा
⦁ गैर-कर स्रोत आय।
कर-स्रोत आय
1. प्रत्यक्ष कर – प्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है
⦁ सम्पत्ति कर – सम्पत्ति कर प्रायः वे कर होते हैं जो कि अचल सम्पत्ति के क्रय-विक्रय पेड़ लगाये जाते हैं। यह स्थानीय संस्थाओं की आय का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। सम्पत्ति कर चार प्रकार के होते हैं-सुधार कर, भूमि पर उपकर, भवन पर कर एवं सम्पत्ति के हस्तान्तरण पर कर।
⦁ हैसियत कर – यह कर व्यक्ति की आर्थिक अवस्था, सामाजिक स्थिति एवं परिवार के सदस्यों की संख्या को ध्यान में रखकर लगाया जाता है।
⦁ गाड़ियों पर कर – यह कर स्थानीय संस्थाओं द्वारा रिक्शा, ठेले आदि पर लगाया जाता है।
⦁ बाजार कर – यह कर बाजारों में माल बेचने वाले व्यक्तियों पर नगरपालिकाओं द्वारा लगाये जाते हैं।
⦁ पशु कर – यह कर जानवरों; जैसे – गाय, बैल, भैंस, कुत्ते आदि पालतू पशुओं पर लगाये जाते हैं।
⦁ मार्ग शुल्क – यह कर उन पुलों से गुजरने वाले व्यक्तियों एवं माल पर लगाया जाता है। जिनकी लागत के ₹5 लाख से अधिक होती है।
2. अप्रत्यक्ष कर – अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित करों को सम्मिलित किया जाता है
⦁ चुंगी कर – चुंगी कर ऐसा कर है जो किसी विशेष स्थानीय क्षेत्र में उपभोग करने अथवा वहाँ पर बिक्री के लिए आने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है। यह कर वस्तु की मात्रा या मूल्य के आधार पर लगाया जा सकता है।
⦁ सीमा कर – जब कोई सामान नगरपालिका की सीमा में प्रवेश करे या सीमा से बाहर जाए या सीमा से गुजरे तो उस पर लगने वाले कर को सीमा कर कहते हैं। रेलों से यात्रा करने वाले यात्रियों के रेल-भाड़े में सीमा कर सम्मिलित होता है, जो रेल-भाड़े के साथ वसूल करके नगर निकायों को दे दिया जाता है।
⦁ सुधार कर – विकास प्रन्यासों द्वारा सम्पत्ति के मूल्य बढ़ाने पर लगने वाले कर को सुधार कर कहते हैं। इन संस्थाओं द्वारा ऐसे कार्य किये जाते हैं, जिससे सम्पत्ति के मूल्य बढ़ जाते हैं और इस बढ़े हुए मूल्य को कर के रूप में प्राप्त करते हैं।
⦁ अन्य कर – स्थानीय सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले अन्य करों में थियेटर कर, विज्ञापन कर आदि हैं।
गैर-कर स्रोत आय
गैर-कर स्रोत में निम्नलिखित प्रकार की आय को सम्मिलित करते हैं
(a) अनुदान – सभी राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा स्थानीय निकायों को अनुदान दिये जाते हैं। सामान्यतः अनुदान शिक्षा, चिकित्सालय तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और सड़क, जलापूर्ति इत्यादि की सहायता के लिए प्रदान किये जाते हैं।
(b) ऋण तथा उपदान – नगर पालिकाओं एवं अन्य स्थानीय संस्थाओं को जलापूर्ति, नालियों की व्यवस्था, गन्दी बस्तियों की सफाई आदि कार्यों के लिए ऋण एवं उपादान प्राप्त करने होते हैं।
(c) अन्य साधन – स्थानीय संस्थाओं को प्राप्त होने वाली आय के अन्य साधनों में निम्नलिखित को सम्मिलित करते हैं
⦁ विनियोग से आय,
⦁ चिकित्सालयों से प्राप्त आय,
⦁ भूमि का लगान एवं मकानों के किराये की आय,
⦁ भूमि एवं भूमि की उपज से आय,
⦁ शिक्षण संस्थाओं से आय,
⦁ बाजारों से प्राप्त आर्य आदि।