एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति की लोकतान्त्रिक प्रवृत्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा प्रभुत्व प्राप्त दल विपक्षी पार्टियों की आलोचना की परवाह न करके मनमाने ढंग से शासन चलाने लगता है व लोकतन्त्र को तानाशाही शासन में बदलने की सम्भावना विकसित होती है, परन्तु हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ। पहले तीन आम-चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के भारतीय राजनीति पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़े तथा इसने भारतीय लोकतन्त्र लोकतान्त्रिक राजनीति व लोकतान्त्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। इस प्रकार एकल पार्टी-प्रभुत्व प्रणाली के अच्छे परिणामों की पुष्टि निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर होती है-
⦁ कांग्रेस राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान किए गए वायदों को पूर्ण करने में सफल रही। जनमानस में कांग्रेस एक विश्वसनीय दल था, जनमानस की आशाएँ उसी से जुड़ी थीं, अतः मतदाताओं ने उसे ही चुना।
⦁ तत्कालीन भारत में लोकतन्त्र और संसदीय शासन-प्रणाली अपनी शैशवावस्था में थी। यदि उस समय कांग्रेस का प्रभुत्व न होता और सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा होती तो जनसाधारण का विश्वास लोकतन्त्र और संसदीय शासन-प्रणाली में उठ जाता।
⦁ तत्कालीन मतदाता राजनीतिक विचारधाराओं के सम्बन्ध में पूर्ण शिक्षित नहीं था, उसका मात्र 15% भाग ही शिक्षित था। मतदाताओं को कांग्रेस में ही आस्था थी। अतः जनता का मानना था कि कांग्रेस से ही जनकल्याण की आशा की जा सकती है।
⦁ प्रभुत्व की स्थिति प्राप्त होने के कारण विपक्षी दलों द्वारा सरकार की आलोचना होने पर भी सरकार अपना कार्य करती रही। इसने भारतीय लोकतन्त्र, संसदीय शासन-प्रणाली व भारतीय राजनीति की लोकतान्त्रिक प्रकृति को सुदृढ़ करने में योगदान दिया।