स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व मिली-जुली सरकार भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में मिली-जुली सरकार के गठन का इतिहास स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व से प्रारम्भ होता है। स्वतन्त्र भारत में नियमों व विधानों के निर्माण हेतु तथा नवीन संविधान की रचना हेतु कैबिनेट मिशन के द्वारा एक अन्तरिम सरकार का गठन किया गया था।
इस सरकार में भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों, कांग्रेस, मुस्लिम लीग, अकाली दल आदि को शामिल किया गया था। इस अन्तरिम सरकार के सभी दलों को मिलाकर कुल 14 प्रतिनिधि शामिल किए गए जिसमें कांग्रेस के 6, मुस्लिम लीग के 5, अकाली दल का 1, एंग्लो इण्डियन समुदाय का 1 तथा पारसी समुदाय का 1 प्रतिनिधि था। अन्तरिम सरकार का अध्यक्ष गवर्नर जनरल को बनाया गया। भारतीय प्रशासन के सभी विभाग अन्तरिम सरकार को सौंपे गए। इस अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू थे। इस अन्तरिम सरकार ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद तब तक यह कार्य किया जब तक कि संविधान लागू नहीं हुआ।
1952 से 1967 तक मिली-जुली सरकार भारत के प्रथम आम-चुनाव 1952 में हुए। इन चुनावों में चुनाव आयोग ने 14 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल के रूप में मान्यता प्रदान की। इन चुनावों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ, क्योंकि उस समय राजनीतिक दल कांग्रेस के समान व्यापक स्तर के नहीं थे फिर भी पं० जवाहरलाल नेहरू ने डॉ० बी० आर० अम्बेडकर, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, गोपाला स्वामी आयंगर जैसे गैर-कांग्रेसी सदस्यों को भी अपने मन्त्रिमण्डल में शामिल किया। भारतीय राज्यों में मिली-जुली सरकारों की राजनीति सन् 1967 के बाद प्रारम्भ हुई।
इसके उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
1. एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होना-चौथे आम-चुनावों के समय उत्तर प्रदेश, उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा), मध्य प्रदेश, प० बंगाल, केरल व गुजरात में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो सका। इसलिए अनेक दलों ने परस्पर सहयोग कर सरकारों का गठन किया।
2. कांग्रेस के एकाधिकार को समाप्त करना-विभिन्न दलों का उद्देश्य कांग्रेस की आलोचना करके कांग्रेस के एकाधिकार को समाप्त करना था। इनका उद्देश्य सत्ता प्राप्ति भी था। इसमें क्षेत्रीय दलों को भी सफलता प्राप्त हुई और राज्यों में मिली-जुली सरकारों का उदय भी हुआ।
3. दल-बदल की राजनीति-राज्य में मिली-जुली सरकारों के उदय का प्रमुख कारण दल-बदल की राजनीति भी रहा है। सन् 1952 से 1956 के मध्य भी 542 बार दल-बदल हुआ। यह दल-बदल कांग्रेस के पक्ष में रहा। परन्तु 1967 के आम चुनावों में एक वर्ष के अन्दर ही 438 बार सदस्यों ने दल-बदल किया। दल-बदल ने केन्द्र एवं राज्यों की राजनीति एवं शासन में अस्थिरता ला दी व इसके कारण भारतीय राजनीति के शब्दकोश में ‘आयाराम-गयाराम’ जैसा शब्द जुड़ गया।
4. केन्द्र व राज्य के मध्य मतभेद की भावना-राज्यों में मिली-जुली सरकारों के उदय का एक कारण केन्द्र व राज्य के सम्बन्धों में कटुता की भावना का उदय होना भी रहा। यदि कोई भी राज्य सरकार केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन नहीं करती थी, तो वहाँ जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता था। केन्द्र व राज्य के मध्य मतभेद उत्पन्न होने के कुछ अन्य कारण भी थे; जैसे-राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति, आर्थिक सहायता आदि।
5. सत्ता-प्राप्ति का लालच-सत्ता प्राप्ति के लोभ ने मिली-जुली सरकारों के उदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। प्रायः उन नेताओं ने मिली-जुली सरकारों के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिन्हें कांग्रेस के शासन-काल में सत्ता सुख प्राप्त नहीं हुआ था। इसी कारण अनेक दलों ने मिलकर मिली-जुली सरकारों का गठन किया ताकि सत्ता सुख प्राप्त हो सके।
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सन् 1967 के बाद राज्यों में मिली-जुली सरकारों की स्थापना हुई।