भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास
Development of Iron-steel Industry in India
लोहा-इस्पात उद्योग वर्तमान युग में एक आधारभूत उद्योग है जिसके उत्पाद अन्य सभी उद्योगों एवं वस्तुओं के निर्माण में आवश्यक होते हैं। इसी उद्योग से देश के औद्योगिक विकास की नींव पड़ती है।
भारत में लोहा गलाने, ढालने तथा इस्पात तैयार करने का कार्य अति प्राचीन काल से किया जा रहा है, परन्तु पश्चिमी देशों में आधुनिक ढंग के उद्योग स्थापित हो जाने से भारतीय लोहे के कुटीर उद्योग को बड़ा धक्का लगा तथा भारत निर्यातक से आयातक देश बन गया। सर्वप्रथम 1874 ई० में पश्चिम बंगाल में झरिया कोयला क्षेत्र में कुल्टी नामक स्थान पर बाराकर लौह कम्पनी की स्थापना की गयी। 1889 ई० में इस कारखाने पर बंगाल लोहा-इस्पात कम्पनी का अधिकार हो गया था। इसके बाद 1907 ई० में झारखण्ड के सांकची नामक स्थान पर प्रसिद्ध व्यवसायी श्री जमशेद जी टाटा द्वारा टाटा आयरन एवं इस्पात कम्पनी (TISCO) की स्थापना की गयी।
इसके पश्चात् 1918 ई० में एक और कारखाना पश्चिम बंगाल में भारतीय लोहा-इस्पात कम्पनी के नाम से आसनसोल के निकट हीरापुर में स्थापित किया गया। 1937 ई० में बर्नपुर में स्टील कॉरपोरेशन ऑफ बंगाल की स्थापना की गयी। वर्तमान में कुल्टी, हीरापुर एवं बर्नपुर के कारखाने भारतीय लोहा और इस्पात कम्पनी (IISCO) के अधिकार में हैं। 1932 ई० में दक्षिणी भारत के मैसूर नगर में मैसूर लोहा और इस्पात कारखाने की स्थापना की गयी। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तीव्र गति से किया गया। दूसरी पंचवर्षीय योजना में तीन नये कारखाने स्थापित करने के लिए ‘हिन्दुस्तान स्टील कम्पनी’ की स्थापना की गयी।
इस कम्पनी के तत्त्वावधान में 10-10 लाख टन की क्षमता के तीन कारखाने भिलाई, राउरकेला एवं दुर्गापुर में स्थापित किये गये तथा TISCO एवं IISCO की उत्पादन क्षमता क्रमशः 20 लाख टन और 10 लाख टन इस्पात बनाने की निर्धारित की गयी। तीसरी पंचवर्षीय योजना में एक नया कारखाना बोकारो में खोलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। चौथी पंचवर्षीय योजना में सलेम, विजयनगर एवं विशाखापट्टनम् में तीन नये कारखाने स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया। 1978 ई० में सार्वजनिक क्षेत्र की इस्पात इकाइयों के लिए ‘स्टील ऑथोरिटी ऑफ इण्डिया’ की स्थापना की गयी जिसके अधिकार में TISCO को छोड़कर अन्य पाँचों इकाइयाँ हैं।
भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के लिए उत्तरदायी भौगोलिक कारक
Geographical Factors of Localisation of Iron-steel Industry in India
लोह्म-इस्पात उद्योग मूलत: कच्चे माल पर आधारित उद्योग है। बाजार की निकटता का इस पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके स्थानीयकरण में अग्रलिखित कारक सहायक हैं –
(1) लौह-अयस्क एवं कोयले की एक-दूसरे के निकट प्राप्ति – इस उद्योग में लोहा एवं कोयला कच्चे माल के रूप में सबसे अधिक प्रयुक्त किये जाते हैं, जो दोनों ही भारी पदार्थ हैं। भारत के झारखण्ड राज्य में कोयला तथा निकटवर्ती राज्य में ओडिशा में लौह-अयस्क निकाली जाती है। इस प्रकार दोनों खनिज पदार्थों के लगभग एक ही स्थान पर उपलब्ध होने के कारण यहाँ लोहा-इस्पात उद्योग की स्थापना में बहुत सुविधा रही है।
(2) अन्य खनिज पदार्थों की सुलभता – लोहा-इस्पात उद्योग में लौह-अयस्क तथा कोयले के अतिरिक्त मैंगनीज, डोलोमाइट तथा चूना-पत्थर आदि अधात्विक खनिज प्रयुक्त किये जाते हैं। भारत में ये पदार्थ भी बिहार एवं ओडिशा राज्यों में ही पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
(3) सस्ती एवं सुलभ जल-विद्युत शक्ति – लोहा-इस्पात कारखानों में भारी-भारी मशीनों के संचालन के लिए तथा भट्टियों में लौह-अयस्क को पिघलाने के लिए शक्ति संसाधन के रूप में सस्ती जल-विद्युत शक्ति सुलभ होनी चाहिए। भारत ने जल-विद्युत के उत्पादन में पर्याप्त प्रगति की है। अतः लोहा-इस्पात उद्योग को सस्ती जल-विद्युत शक्ति सुगमता से मिल जाती है।
(4) स्वच्छ जल की आपूर्ति – लोहा-इस्पात उद्योग के लिए काफी मात्रा में स्वच्छ जल की भी आवश्यकता होती है। कारखानों के समीप ही सदावाहिनी नदियाँ इस उद्योग को स्वच्छ जल प्रदान करती हैं।
(5) विस्तृत बाजार – भारत एक विकासशील देश है। यहाँ नये-नये कारखाने, बाँध एवं भवननिर्माण के अनेक कार्य निरन्तर क्रियान्वित किये जा रहे हैं, जिनमें लौह-इस्पात की भारी माँग रहती है। भारत लोहा-इस्पात के सामान का निर्यात भी करता है। पर्याप्त माँग होने के कारण यहाँ लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तीव्र गति से हुआ है।
(6) सस्ते एवं कुशल श्रमिक – लोहा-इस्पात उद्योग में कार्य करने के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। सघन जनसंख्या के समीपवर्ती भागों में लोहा-इस्पात केन्द्र स्थापित किये जाने के कारण इस उद्योग को पर्याप्त संख्या में सस्ते एवं कुशल श्रमिक आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। भारत में श्रमिकों को कुशल तथा प्रशिक्षित करने के लिए भी अनेक संस्थान खोले गये हैं।”
(7) परिवहन के सस्ते एवं सुलभ साधन – लोहा-इस्पात एक भारी पदार्थ है। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने, मशीनों को लाने, कच्चा माल एकत्र करने तथा तैयार माल को बाहर भेजने में सस्ते परिवहन साधनों की आवश्यकता पड़ती है। भारत में ये साधन सुलभ एवं सस्ते हैं; अत: लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना में इनसे बड़ी सहायता मिली है।
(8) पर्याप्त पूँजी – लोहा-इस्पात उद्योग में बड़े-बड़े संयन्त्र लगाने आवश्यक होते हैं। इनके स्थापन के लिए अरबों रुपयों की आवश्यकता होती है। भारत के साहसी उद्योगपतियों ने इस उद्योग के लिए पर्याप्त पूँजी जुटाकर इस उद्योग की स्थापना में बहुत सहयोग दिया है। भारत सरकार भी इस उद्योग को पर्याप्त अनुदान एवं आर्थिक सहायता प्रदान करती है।
(9) सरकारी संरक्षण एवं सहायता – भारत में लोहा-इस्पात के अधिकांश कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किये गये हैं जिन्हें सरकार ने संरक्षण एवं संहायता प्रदान की है, जिससे लोहा-इस्पात उद्योग की स्थापना में बहुत प्रोत्साहन मिला है।
भारत में लोहा-इस्पात का उत्पादन तथा वितरण
Production and Distribution of Iron-steel in India
भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत में जमशेदपुर के इस्पात कारखाने को छोड़कर शेष सभी इस्पात केन्द्र सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। देश में इस्पात पिण्डों की स्थापित क्षमता 200 लाख टनं वार्षिक है, जबकि इनका वास्तविक उत्पादन 180 लाख टन है। भारत में लोहा और इंस्पात । तैयार करने वाली इकाइयों का विवरण अग्रलिखित है –
(1) टाटा आयरन एण्ड स्टील, कम्पनी (TISCO) – भारत में यह एक बड़ा तथा महत्त्वपूर्ण लोहा-इस्पात का कारखाना है जो कि अकेला ही निजी क्षेत्र में है। यह एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा इस्पात कारखाना है। यह कारखाना झारखण्ड राज्य के सिंहभूम जिले में कोलकाता-नागपुर रेलमार्ग पर कोलकाता से 240 किमी उत्तर-पश्चिम में झारखण्ड राज्य के सांकची (जमशेदपुर) नामक स्थान पर 1907 ई० में प्रसिद्ध उद्योगपति जमशेद जी टाटा द्वारा स्थापित किया गया था। इसके उत्तर में स्वर्ण रेखा और पश्चिम में खोरकाई नदियाँ प्रवाहित होती हैं।
इस कारखाने में लोहे की सलाखें, गर्डर, रेल के डिब्बे, पहिये एवं पटरियाँ, चादरें, स्लीपर तथा फिश प्लेटें बनाई जाती हैं। इसके निकटवर्ती भागों में टिन प्लेट, कास्ट लोहे की पटरियाँ, इंजीनियरिंग
और मशीन कम्पनी, फाउण्ड्री, कृषि के उपकरण, रेलवे इन्जन तथा विद्युत तार के उद्योग-धन्धे स्थापित किये गये हैं। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता प्रतिवर्ष 40 लाख टन इस्पात की है।
स्थानीयकरण के कारक – इस इस्पात केन्द्र को अनेक भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं, जो निम्नलिखित हैं –
⦁ इस कारखाने के लिए लोहा पार्श्ववर्ती गुरुमहिसानी की पहाड़ियों से प्राप्त होता है जो यहाँ से लगभग 100 किलोमीटर दूर हैं।
⦁ कोयला झरिया की खानों से मिलता है, जो केवल 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
⦁ चूना 320 किलोमीटर की दूरी से आता है, विशेषकर विरमित्रापुर, हाथीबारी, बिसरा, कटनी और बाराद्वार से।
⦁ पागपोश की डोलोमाइट की खानें यहाँ से 480 किलोमीटर दूर हैं तथा उत्तम श्रेणी का मैंगनीज और अन्य रासायनिक पदार्थ निकट ही प्राप्त हो जाते हैं। क्वार्ट्जाइट एवं क्रोमाइट वाली शैलें भी यहाँ मिलती हैं।
⦁ लोहा इस्पात के लिए मीठे और स्वच्छ जल की आवश्यकता पूर्ति के लिए नदियों के जल को बड़े हौजों में एकत्रित कर लिया जाता है। स्वर्णरेखा नदी की बालू मिट्टी लोहा ढालने के लिए उपयुक्त है।
⦁ जमशेदपुर का कारखाना दक्षिणी-पूर्वी रेलमार्ग द्वारा कोलकाता तथा मुम्बई से जुड़ा है, जहाँ निर्मित माल सुविधापूर्वक भेजा जा सकता है।
⦁ कोलकाता के निकट अनेक इन्जीनियरिंग उद्योग स्थित हैं जहाँ विभिन्न प्रकार के लोहे की खपत होती है। यहाँ श्रमिक न केवल संथाली लोग हैं वरन् बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लोग भी हैं।