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‘रश्मिरथी’ के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए। 

या

‘रश्मिरथी के आधार पर कृष्ण के विराट् व्यक्तित्व को संक्षेप में लिखिए।

या

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘कृष्ण’ की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

या

‘रश्मिरथी’ के आधार पर कृष्ण के चरित्र की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

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रश्मिरथी’ खण्डकाव्य में श्रीकृष्ण के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई देती हैं—

(1) युद्ध-विरोधी-पाण्डवों के वनवास से लौटने के बाद श्रीकृष्ण कौरवों को समझाने के लिए स्वयं हस्तिनापुर जाते हैं और युद्ध टालने का भरसक प्रयास कर करते हैं, किन्तु हठी दुर्योधन नहीं मानता। इसके बाद वे कर्ण को भी समझाते हैं, परन्तु कर्ण भी अपने प्रण से नहीं हटता। अन्त में श्रीकृष्ण कहते हैं-

यश मुकुट मान सिंहासन ले, बस एक भीख मुझको दे दे।
कौरव को तज रण रोक सखे, भू का हर भावी शोक सखे ।

(2) निर्भीक एवं स्पष्टवादी-श्रीकृष्ण केवल अनुनय-विनय ही करना नहीं जानते, वरन् वे निर्भीक एवं स्पष्ट वक्ता भी हैं। जब दुर्योधने समझाने से नहीं मानता तो वे उसे चेतावनी देते हुए कहते हैं-

तो ले मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ ।
याचना नहीं अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा।

(3) शीलवान व व्यावहारिक-श्रीकृष्ण के सभी कार्य उनके शील के परिचायक हैं। वास्तव में वे एक सदाचारपूर्ण समाज की स्थापना करना चाहते हैं। वे शील को ही जीवन का सार मानते हैं-

नहीं पुरुषार्थ केवल जाति में है, विभा का सार शील पुनीत में है।

साथ ही वह सांसारिक सिद्धि और सफलता के सभी सूत्रों से भी अवगत हैं।

(4) गुणों के प्रशंसक-श्रीकृष्ण अपने विरोधी के गुणों का भी आदर करते हैं। कर्ण उनके विरुद्ध लड़ता है, परन्तु श्रीकृष्ण कर्ण का गुणगान करते नहीं थकते-

……………वीर शत बार धन्य, तुझ-सा न मित्र कोई अनन्य।

(5) महान् कूटनीतिज्ञ-श्रीकृष्ण महान् कूटनीतिज्ञ हैं। पाण्डवों की विजय श्रीकृष्ण की कूटनीति के कारण ही हुई। वे पाण्डवों की ओर के कूटनीतिज्ञ की कार्य कर दुर्योधन की बड़ी शक्ति कर्ण को उससे अलग करने का प्रयत्न करते हैं। उनकी कूटनीतिज्ञता का प्रमाण कर्ण से कहा गया उनका यह कथन है-

कुन्ती का तू ही तनय श्रेष्ठ, बलशील में परम श्रेष्ठ।
मस्तक पर मुकुट धरेंगे हम, तेरा अभिषेक करेंगे हम ॥

(6) अलौकिक शक्तिसम्पन्न–कवि ने श्रीकृष्ण के चरित्र में जहाँ मानव-स्वभाव के अनुरूप अनेक साधारण विशेषताओं का समावेश किया है, वहीं उन्हें अलौकिक शक्ति-सम्पन्न रूप देकर लीलापुरुष भी सिद्ध किया हैं। जब दुर्योधन उन्हें कैद करना चाहता है, तब वे अपने विराट स्वरूप में प्रकट हो जाते हैं-

हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप विस्तार किया।
डगमग डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले
जंजीर बढ़ाकर साध मुझे, हाँ हाँ दुर्योधन बाँध मुझे।”

इस प्रकार इस खण्डकाव्य में श्रीकृष्ण को श्रेष्ठ कूटनीतिज्ञ, किन्तु महान् लोकोपकारक के रूप में चित्रित करके कवि ने उनके पौराणिक चरित्र को युगानुरूप बनाकर प्रस्तुत किया है। कवि के इस प्रस्तुतीकरण की विशेषता यह है कि इससे कहीं भी उनके पौराणिक स्वरूप को क्षति नहीं पहुंची है। कृष्ण का यह व्यक्तित्व कवि की कविता में युगानुसार प्रकट हुआ है।

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