समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ठ रूप से संबंधित है। विभिन्न विद्वानों ने समाजशास्त्र व अन्य सामाजिक विज्ञानों के संबंध के विषय में भिन्न-भिन्न विचार प्रकट किए हैं। मुख्य विद्वानों के विचार निम्नवर्णित हैं-
गिडिंग्स के विचार-गिडिंग्स समाजशास्त्र को न तो सामाजिक विज्ञानों का समन्वय मानते हैं और न ही संयोग, वरन वे इसे स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्वीकार करने पर बल देते हैं। समाजशास्त्र का अपना एक भिन्न दृष्टिकोण है। इसी दृष्टिकोण के आधार पर अर्थशास्त्र, इतिहास तथा राजनीतिशास्त्र को समाजशास्त्र से अलग किया जा सकता है। वस्तुतः वह समस्त सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन सामाजिक दृष्टिकोण के आधार पर करता है। इस स्थिति में समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों का स्वामी कहा जा सकता है।
सोरोकिन के विचार–सोरोकिन के अनुसार, समाजशास्त्र न केवल अन्य सामाजिक विज्ञानों का आधार है वरन् एक विशिष्ट विज्ञान है। सोरोकिन के शब्दों में, “समाजशास्त्र न केवल समाज के सामान्य सिद्धान्तों का अध्ययन करता है वरन यह विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के मध्य संबंध स्थापित करता है और उन्हें पूर्ण बनाता है।” उपर्युक्त विवरण के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र व अन्य सामाजिक विज्ञानों के पारस्परिक संबंधों के विषय में विभिन्न विद्वानों के विचारों में मतैक्य का अभाव है। प्रत्येक ने अपने दृष्टिकोण से विचारों को प्रकट किया है तथा प्रत्येक के दृष्टिकोण में कुछ-न-कुछ सत्यता है। वैसे अधिकांश विद्वान वार्ड के मत से अधिक सहमत है।
कॉम्टे के विचार–समाजशास्त्र के जन्मदाता फ्रांसीसी समाजशास्त्री ऑगस्त कॉम्टे समाजशास्त्र व अन्य सामाजिक विज्ञानों में किसी प्रकार का संबंध नहीं है। उनके मतानुसार समाजशास्त्र एक पूर्ण एवं स्वतंत्र विषय है, जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता समाज एक पूर्णता है और उसका अध्ययन भी पूर्णता में ही होना चाहिए। इतिहास, अर्थशास्त्र व राजनीतिशास्त्र आदि सभी विषय समाज के केवल एक पहलू का ही अध्ययन करते हैं। इस कारण समाज के यथार्थ स्वरूप का अध्ययन नहीं हो पाता। इस दोष की पूर्ति केवल समाजशास्त्र द्वारा ही हो सकती है। ऐसी दशा में समाजशास्त्र के अतिरिक्त अन्य विषय व्यर्थ हैं। समाजशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान है, उसे अपने अध्ययनों में किसी अन्य शास्त्र से सहायता नहीं लेनी चाहिए। वास्तव में, इनका समाजशास्त्र के विकास का उद्देश्य यही था कि इससे सभी पहलुओं को एक साथ रखकर अध्ययन किया जा सकें।
स्पेंसर के विचार–स्पेंसर के अनुसार, “समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों का समन्वय मात्र है। समाजशास्त्र समस्त सामाजिक विज्ञानों में से प्रत्येक से कुछ बातें ग्रहण करती है और उनका समन्वय करता है। इस प्रकार समाजशास्त्र को स्वतंत्र विज्ञान के रूप में, जैसा कि कॉम्टे मानते हैं, स्वीकार नहीं किया जा सकता। इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र आदि जितने भी सामाजिक विज्ञान है, सभी पूर्ण विज्ञान हैं। ये विज्ञान समाजशास्त्र को प्रभावित कर सकते हैं, परंतु समाजशास्त्र इन्हें प्रभावित नहीं कर सकता।”
वार्ड के विचार-वार्ड स्पेंसर के मत के पक्ष में नहीं हैं। उसके अनुसार समाजशास्त्र विभिन्न सामाजिक विज्ञानों का केवल समन्वय नहीं है वरन स्वतंत्र विज्ञान है। यह सत्य है कि समाजशास्त्र में अन्य सामाजिक विज्ञानों का समन्वय होता है, परंतु यह समन्वय केवल मिश्रण नहीं है वरन् नवीन विषय की सृष्टि करने वाला संयोग होता है। विभिन्न सामाजिक विज्ञान मिलकर एक नवीन विषय को निर्माण करते हैं और अपना स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त कर देते हैं। इस संयोग से एक नवीन विषय ‘समाजशास्त्र’ का जन्म होता है, जो पूर्णतया स्वतंत्र विज्ञान है। उदाहरण के लिए नीले और पीले रंग मिलकर हरे रंग को जन्म देते हैं जो कि पीले और नीले रंग से पूर्णतया अलग होता है। उसी प्रकार विभिन्न सामाजिक विज्ञानों से तत्त्व ग्रहण करके समाजशास्त्र सर्वथा नवीन और स्वतंत्र विज्ञान बन जाता है।
उपर्युक्त विवरण के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र व अन्य सामाजिक विज्ञानों के पारस्परिक संबंधों के विषय में विभिन्न विद्वानों के विचारों में मतैक्य का अभाव है। प्रत्येक ने अपने दृष्टिकोण से विचारों को प्रकट किया है तथा प्रत्येक के दृष्टिकोण में कुछ-न-कुछ सत्यता है। वैसे अधिकांश विद्वान वार्ड के मत से अधिक सहमत हैं।
समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध
समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञानों के एक समूह का भाग है। विभिन्न सामाजिक विज्ञानों में पाया जाने वाला विभाजन सुस्पष्ट नहीं है और इसलिए सभी में कुछ सीमा तक सामान्य रुचियाँ, संकल्पनाएँ एवं अध्ययन की पद्धतियाँ हैं। इसलिए बहुत-से विद्वानों का कहना है कि सामाजिक विज्ञानों को अलग-अलग करना इनमें पाए जाने वाले अंतरों को अतिरंजित करना तथा समानताओं पर आवरण चढ़ाने जैसा होगा। अधिकांश सामाजिक विज्ञानों द्वारा अन्त:विषयक उपागम (Inter-disciplinary approach) अपनाए जाने से सामाजिक विज्ञानों में अंतर करना और भी कठिन हो गया है। फिर भी, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि विभिन्न सामाजिक विज्ञानों में परस्पर संबंध के बावजूद रुचियों, संकल्पनाओं एवं अध्ययन-पद्धतियों में थोड़ा-बहुत अंतर पाया जाता है। समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञानों में पाया जाने वाला परस्पर संबंध निम्न प्रकार हैं-
(अ) समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र
समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र का परस्पर घनिष्ठ संबंध हैं। अर्थशास्त्र भी एक सामाजिक विज्ञान है, क्योंकि उसमें मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के संबंधों पर विचार करने से पूर्व यह आवश्यक है कि अर्थशास्त्र के अर्थ पर प्रकाश डाला जाए। अर्थशास्त्र आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन है। इसमें मुख्यत: उत्पादन, वितरण एवं उपभोग का अध्ययन किया जाता है। प्रमुख विद्वानों ने अर्थशास्त्र को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-
फेयरचाइल्ड (Fairchild) के अनुसार-“अर्थशास्त्र मनुष्य की उन क्रियाओं का अध्ययन है, जो मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए भौतिक साधनों की प्राप्ति हेतु की जाती है।”
मार्शल (Marshall) के अनुसार–‘अर्थशास्त्र मनुष्य के धनोपार्जन के दृष्टिकोण से मनुष्य जाति का अध्ययन है।”
रॉबिन्स (Robbins) के अनुसार-“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो कि मानवीय आचरणों का साध्य एवं साधनों के विभिन्न प्रयोगों के पारस्परिक संबंधों की दृष्टि से अध्ययन करता है।”
अर्थशास्त्र की परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण का अध्ययन करता है तथा इसका मुख्य विषय आर्थिक क्रियाएँ हैं। शास्त्रीय आर्थिक दृष्टिकोण पूर्ण रूप से आर्थिक चरों के अंतर्संबंधों (जैसे कीमत, माँग एवं पूर्ति का संबंध) का वर्णन करता है। इसमें मुख्य रूप से इस बात पर विचार किया जाता है कि उत्पादन के साधनों को अर्जन किस प्रकार किया जा सकता है और उससे संबधित विभिन्न नियम क्या-क्या हैं, परंतु उत्पादन के साधनों को संबंध मनुष्य । से होता है और मनुष्य समाज की क्रियाशील सदस्य है। समाजशास्त्र के माध्यम से सामाजिक संबंधों को समझने का प्रयास किया जाता है और अर्थशास्त्र द्वारा समाज और व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों को समझने का प्रयास किया जाता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र आर्थिक संबंधों का अध्ययन करता है और समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का, परंतु आर्थिक संबंध सामाजिक संबंधों पर आश्रित होते हैं। वास्तव में, आर्थिक संबंध सामाजिक संबंधों के गुच्छे की एक कड़ी मात्र है। इस प्रकार, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र दोनों एक-दूसरे के अत्यधिक निकट हो जाते हैं, दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। जैसे-जैसे आर्थिक प्रक्रिया समाज में विकसित होती है, वैसे-वैसे सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता है; अर्थात् आर्थिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन के प्रति भी उत्तरदायी होते हैं। इस कारण ही कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक परिवर्तन के आधार पर सामाजिक परिवर्तनों के स्वरूप की व्याख्या की है। समाज के रीति-रिवाज, परंपराएँ, रूढ़ियाँ तथा कानून आदि परिस्थितियों द्वारा प्रभावित होते रहते हैं। अर्थशास्त्र की विभिन्न क्रियाएँ; जैसे—उत्पादन, वितरण तथा उपभोग इत्यादि; समाज में ही क्रियांवित होती हैं और सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है। औद्योगिक विकास ने पूँजीवाद को जन्म दिया तथा पूँजीवाद ने संघर्ष को। मैकाइवर एवं पेज (Maclver and Page) ने ठीक ही लिखा है, “आर्थिक घटनाएँ सदैव सामाजिक आवश्यकताओं और क्रियाओं से प्रभावित होती है और स्वयं भी उन्हें सदा प्रभावित करती हैं।’ कार्ल मार्क्स (Karl Marx) आर्थिक कारणों को ही सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारण मानते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में परस्पर घनिष्ठ संबंध है। अनेक विद्वानों का तो मत यह है कि समाज की समस्त समस्याओं का समाधान केवल आर्थिक व्यवस्था के सुधार में हैं। इस कारण ही अर्थशास्त्र को समाजशास्त्र की एक शाखा भी माना जाता है। थॉमस (Thomas) के शब्दों में, “वास्तव में अर्थशास्त्र समाजशास्त्र के विस्तृत विज्ञान की एक शाखा है।”
इसी प्रकार, सिल्वरमैन (Silverman) ने लिखा है, “साधारण कार्यों के लिए अर्थशास्त्र को पितृविज्ञान समाजशास्त्र, जो सामाजिक संबंधों के सामान्य सिद्धांत का अध्ययन करता है, की एक शाखा माना जा सकता है।”
समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में निम्नलिखित प्रमुख अंतर पाए जाते हैं-
⦁ समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों को संपूर्ण रूप से अध्ययन किया जाता है, परंतु अर्थशास्त्र में केवल आर्थिक संबंधों का ही अध्ययन किया जाता है। इस स्थिति में यह कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्र एक सीमित विज्ञान है, जबकि समाजशास्त्र एक विस्तृत विज्ञान है।।
⦁ समाजशास्त्र के क्षेत्र में संपूर्ण समाज सम्मिलित है, जबकि अर्थशास्त्र में केवल इसका आर्थिक पक्ष ही सम्मिलित है।
⦁ समाजशास्त्र में समाज का अध्ययन किया जाता है, उसकी इकाई समूह है; परंतु अर्थशास्त्र की इकाई मनुष्य है तथा उसके आर्थिक पक्ष की विवेचना की जाती है।
⦁ समाजशास्त्र एक सामान्य सामाजिक विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र एक विशिष्ट सामाजिक विज्ञान है।
⦁ समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धतियाँ अर्थशास्त्र की अध्ययन पद्धतियों से भिन्न हैं, क्योंकि अर्थशास्त्र में केवल आगमन तथा निगमन पद्धतियों का ही मूल रूप से, प्रयोग किया जाता है। इसके विपरीत, समाजशास्त्र में सामाजिक सर्वेक्षण, समाजमिति तथा निरीक्षण आदि विभिन्न अध्ययन प्रविधियों एवं ऐतिहासिक, तुलनात्मक संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक आदि पद्धतियों को अपनाया जाता है।
(ब) समाजशास्त्र और इतिहास
समाजशास्त्र और इतिहास सदा एक-दूसरे के निकट रहे हैं। सर्वप्रथम हमें यह समझना है कि ‘इतिहास’ का अर्थ क्या है? अंग्रेजी के शब्द ‘History’ का जन्म ग्रीक शब्द historica’ से हुआ है। जिसका अर्थ है ‘वास्तविक रूप में क्या घटित हुआ। इस अर्थ में इतिहास केवल निरंतर घटित होने वाली घटनाओं का निष्पक्ष लेखा-जोखा मात्र है। कुछ विद्वानों के विचार में इतिहास केवल युद्धों का ही विवेचन करता है, परंतु यह धारणा भ्रामक है, क्योंकि इतिहास मानव-समाज के प्रत्येक पहलू का विवेचन करता है। इतिहास की सबसे सुंदर परिभाषा रेपसन ने इन शब्दों में दी है, “इतिहास घटनाओं या विचारों की प्रगति का एक सुसंबद्ध विवरण है। इस प्रकार इतिहास एक सुसंगठित एवं क्रमबद्ध ज्ञान है, जिससे घटनाओं का तारतम्यता के साथ वर्णन किया जाता है। घाटे के अनुसार, “इतिहास हमारे संपूर्ण भूतकाल का वैज्ञानिक अध्ययन तथा लेखा-जोखा अर्थात् ज्ञात प्रमाण है।”