प्रायः संस्कृति और सभ्यता के अर्थों में भ्रम पैदा हो जाती है। अधिकतर लोगों द्वारा इनको एक-दूसरे के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किया जाता है, परंतु यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो दोनों में स्पष्ट अंतर दिखाई देता है। गंग्वृति के दो पक्ष होते हैं—अभौतिक एवं भौतिक। संज्ञानात्मक एवं आदर्शात्मक पक्ष को संस्कृति कहते हैं, जबकि भौतिक पक्ष को अधिकतर सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
सभ्यता का अर्थ तथा परिभाषाएँ
संस्कृति के भौतिक पक्ष को सभ्यता कहा जाता है। सभ्यता में औजारों, तकनीकों, यंत्रों, भवनों तथा यातायात के साधनों के साथ-साथ उत्पादन तथा संप्रेक्षण के उपकरणों को सम्मिलित किया जाता है। मानव ने अपनी सुख-सुविधा के लिए जिन वस्तुओं का उत्पादन किया है उन्हें हम सभ्यता कहते हैं। सभ्यता को उत्पादन बढ़ाने तथा जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। प्रमुख विद्वानों ने सभ्यता को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-
⦁ मैकाइवर एवं पेज (Maclver and Page) के अनुसार-सभ्यता से हमारा अर्थ उस संपूर्ण प्रविधि तथा संगठन से है जिसे कि मनुष्य ने अपने जीवन की दशाओं को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाया हैं।”
⦁ ग्रीन (Green) के अनुसार-“एक संस्कृति तभी सभ्यता बनती है जब उसके पास एक लिखित भाषा, विज्ञान, दर्शन, अत्यधिक विशेषीकरण वाला श्रम-विभाजन, एक जटिल प्रविधि तथा राजनीतिक पद्धति हो।”
⦁ ऑगबर्न एवं निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार-“अधिजैविक संस्कृति के बाद की अवस्था के रूप में सभ्यता की परिभाषा दी जा सकती है।”
⦁ क्लाइव बेल (Cliye Bell) के अनुसार-“वह (सभ्यता) मूल्यों के ज्ञान के आधार पर स्वीकृत किया गया तर्क और तर्क के आधार पर कठोर और भेदनशील बनाया गया मूल्यों का ज्ञान है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि सभ्यता का संबंध उस कला विन्यास से है जिसे मनुष्य ने अपने जीवन की दशाओं को नियंत्रित करने हेतु रचा है। यह संस्कृति का अधिक जटिल व विकसित रूप है जिसमें मानव निर्मित भौतिक वस्तुएँ सम्मिलित होती हैं।
सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ
सभ्यता की प्रमुख परिभाषाओं से इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-
⦁ सभ्यता संस्कृति के विकास का उच्च व जटिल स्तर है।
⦁ सभ्यता में परिवर्तनशीलता का गुण पाया जाता है।
⦁ सभ्यता भौतिक संस्कृति है, क्योंकि इसमें मानव निर्मित भौतिक वस्तुएँ ही सम्मिलित की जाती हैं।
⦁ भौतिक वस्तुओं से संबंधित होने के कारण सभ्यता की प्रकृति मूर्त होती है।
⦁ सभ्यता में उपयोगिता का गुण पाया जाता है अर्थात् यह मनुष्यों के लिए किसी-न-किसी प्रकार से उपयोगी होती है।
⦁ सभ्यता में प्रगतिशीलता का गुण पाया जाता है।
⦁ सभ्यता मानव आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन है। इनसे मानव आनंद व संतुष्टि प्राप्त करता है।
⦁ सभ्यता में एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रसारित होने की क्षमता पाई जाती है। इसलिए जो कोई वस्तु किसी एक देश में बनती व विकसित होती है उसका अन्य देशों में शीघ्र ही प्रसार हो जाता है।
⦁ सभ्यता मानव कार्यों को सरल बनाती है।
⦁ सभ्यता सांस्कृतिक क्रियाओं को शक्ति प्रदान करती है तथा संस्कृति के विकास के उत्थान में सहायता देती है।
सभ्यता एवं संस्कृति में अंतर
सभ्यता और संस्कृति में पाए जाने वाले प्रमुख अंतर निम्न प्रकार हैं-
⦁ गिलिन एवं गिलिन के मत में, “सभ्यता, संस्कृति को अधिक जटिल तथा विकसित रूप है।”
⦁ ए० डब्ल्यू० ग्रीन सभ्यता और संस्कृति के अंतर को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि “एक संस्कृति तभी सभ्यता बनती है जब उसके पास लिखित भाषा, विज्ञान, दर्शन, अत्यधिक विशेषीकरण वाला श्रम-विभाजन, एक जटिल प्रविधि और राजनीतिक पद्धति हो।”
⦁ संस्कृति का संबंध आत्मा से है और सभ्यता का संबंध शरीर से है।
⦁ सभ्यता को सरलता से समझा जा सकता है, लेकिन संस्कृति को हृदयंगम करना कठिन है।
⦁ सभ्यता को कुशलता के आधार पर मापना चाहें तो मापा जा सकता है, परंतु संस्कृति को नहीं।
⦁ सभ्यता में फल प्राप्त करने का उद्देश्य होता है, परंतु संस्कृति में क्रिया ही साध्य है।
⦁ मैकाइवर एवं पेज के अनुसार-संस्कृति केवल समान प्रवृत्ति वालों में ही संचारित रहती है। कलाकार की योग्यता के बिना कोई भी कला के गुण की परख नहीं कर सकता, न ही संगीतकार के गुण के बिना ही कोई संगीत का मजा ले सकता। सभ्यता सामान्य तौर पर ऐसी माँग नहीं करती। हम उसको उत्पन्न करने वाली सामर्थ्य में हिस्सा लिए बिना ही उसके उत्पादकों का आनंद ले सकते हैं।”
⦁ सभ्यता का संपूर्ण हस्तांतरण हो सकता है, परंतु संस्कृति का हस्तांतरण पूर्ण रूप से कभी नहीं ” हो सकता।
⦁ सभ्यता का रूप बाह्य होता है, जबकि संस्कृति का आंतरिक।
⦁ सभ्यता बिना प्रयास के प्रसारित होती है, जबकि संस्कृति ज्यों-की-त्यों प्रसारित नहीं होती।
⦁ सभ्यता सदा प्रगति करती है, जबकि संस्कृति सदैव प्रगति नहीं करती।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि संस्कृति एवं सभ्यता दो भिन्न संकल्पनाएँ हैं, यद्यपि दोनों में परस्पर घनिष्ठ संबंध पाया जाता है। सभ्यता संस्कृति का भौतिक पक्ष है। इसलिए ठीक ही कहा जाता है कि “हमारे पास जो कुछ है वह सभ्यता है, हम जो कुछ हैं वह संस्कृति है।”