अवधान के विस्तार का अर्थ एवं परीक्षण
हम जानते हैं कि अवधान या ध्यान एक मानसिक प्रक्रिया है तथा इस प्रक्रिया के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी मानसिक शक्तियों को अभीष्ट विषय-वस्तु पर केन्द्रित करता है। अवधान नामक मानसिक प्रक्रिया के सन्दर्भ में अवधान के विस्तार (Span of Attention) का भी व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
अवधान के विस्तार का सम्बन्ध अवधान के क्षेत्र या व्यापकता से है। किसी व्यक्ति द्वारा किसी एक समय में अधिक-से-अधिक जितने बाहरी उद्दीपकों को ध्यान का विषय बनाया जाता है, उसे ही अवधान का विस्तार माना जाता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के उद्दीपकों के सन्दर्भ में व्यक्ति के अवधान का विस्तार भी भिन्न-भिन्न होता है। इस सन्दर्भ में वुडवर्थ तथा श्लासबर्ग ने व्यवस्थित अध्ययन किया तथा निष्कर्ष स्वरूप बताया कि यदि उद्दीपक बिन्दुओं के रूप में हों तो अवधान का विस्तार सर्वाधिक होता है। इससे कम अक्षरों का अवधान विस्तार होता है। जहाँ तक ज्यामितिक आकृतियों का प्रश्न है, उनको अवधान-विस्तार सबसे कम होता है।
अवधान के विस्तार के निर्धारण के लिए हेमिल्टन नामक मनोवैज्ञानिक ने सर्वप्रथम कुछ व्यवस्थित अध्ययन आयोजित किये। उसने 1859 ई० में छात्रों के अवधान के विस्तार को जानने के लिए एक अध्ययन का आयोजन किया। इस अध्ययन के अन्तर्गत उसने विषय-पात्रों के सम्मुख संगमरमर के कुछ टुकड़ों को बिखेर दिया तथा उन्हें बिखरे हुए टुकड़ों पर तुरन्त ध्यान केन्द्रित करने का निर्देश दिया। इस परीक्षण के दौरान हेमिल्टन ने देखा कि सामान्य रूप से छात्र एक साथ अधिक-से-अधिक संगमरमर के 6-7 टुकड़ों पर अवधान को केन्द्रित करने में सफल हुए। इस प्रकार निष्कर्षस्वरूप बताया गया कि छात्रों के अवधान का विस्तार 6-7 विषयों तक है। इस परीक्षण से ही मिलता-जुलती एक अन्य परीक्षण 1871 ई० में जेवोन्स द्वारा आयोजित किया गया। उसने अपने विषय-पात्रों के सम्मुख रखी लकड़ी की ट्रे में मटर के कुछ दानों को बिखेर दिया तथा उन्हें मटर के अधिक-से-अधिक दानों पर ध्यान केन्द्रित करने का निर्देश दिया। इस परीक्षण में देखा गया कि सामान्य विषय-पात्र एक समय में 3-4 मटरों पर सरलता से ध्यान केन्द्रित करने में सफल रहा। 5 से अधिक मटरों पर ध्यान केन्द्रित करने के प्रयास में अधिक त्रुटियाँ पायी गयीं। वास्तव में अवधान का विस्तार एक मानसिक प्रक्रिया होने के साथ-साथ व्यक्तिगत क्षमता भी है। सभी व्यक्तियों का अवधान-विस्तार समान नहीं होता। कुछ का सामान्य से कम तथा कुछ का सामान्य से अधिक भी हो सकता है। अवधान के विस्तार को अभ्यास एवं प्रयास द्वारा कुछ हद तक बढ़ाया भी जा सकता है।
अवधान के विस्तार को निर्धारित करने वाले कारक
यह सत्य है कि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के अवधान का विस्तार भिन्न-भिन्न होता है। यही नहीं, एक ही व्यक्ति का अवधान-विस्तार भी भिन्न-भिन्न काल एवं परिस्थिति में भिन्न-भिन्न हो सकता है। वास्तव में अवधान के विस्तार पर विभिन्न कारकों का अनुकूल अथवा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अवधान के विस्तार को प्रभावित करने वाले ये कारक ही अवधान-विस्तार के निर्धारक कारक कहलाते हैं। अवधान के विस्तार के मुख्य निर्धारक कारकों का सामान्य विवरण निम्नलिखित है –
(1) उद्दीपन सम्बन्धी कारक – अवधान के विस्तार के निर्धारकों में मुख्यतम कारक हैउद्दीपन सम्बन्धी कारक। अवधान-विस्तार के इस निर्धारक कारक को प्रतिप्रादित करने का कार्य हण्टर तथा सिंगलर नामक मनोवैज्ञानिकों ने किया था। विभिन्न परीक्षणों के आधार पर इन मनोवैज्ञानिकों ने निष्कर्ष प्राप्त किया कि विषय-वस्तु को प्रस्तुत करने की अवधि तथा वातावरण में विद्यमान प्रकाश की तीव्रता व्यक्ति के अवधान के विस्तार को प्रभावित करने वाले उद्दीपन सम्बन्धी मुख्य कारक हैं। यदि समुचित प्रकाश में पर्याप्त समय-अवधि के लिए किसी विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया जाए तो व्यक्ति के अवधान का विस्तार अधिक होता है। इसके विपरीत, यदि सामान्य से कम प्रकाश में कम समय के लिए विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया जाए तो निश्चित रूप से व्यक्ति के अवधान का विस्तार कम होता है।
(2) उद्दीपकों की सार्थकता – व्यक्ति के अवधान के विस्तार को प्रभावित एवं निर्धारित करने वाला एक कारक है–सम्बन्धित उद्दीपकों की सार्थकता। विभिन्न अध्ययनों के आधार पर निष्कर्ष प्राप्त किया गया है कि सरल एवं सार्थक उद्दीपकों के सन्दर्भ में व्यक्ति के अवधान का विस्तार सामान्य रूप से अधिक होता है। यदि उद्दीपक का स्वरूप कठिन तथा निरर्थक हो तो व्यक्ति के अवधान का विस्तार सामान्य से कम होता है। व्यवहार में भी हम देख सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति अधिक संख्या में सार्थक शब्दों पर ध्यान केन्द्रित कर सकता है, परन्तु अधिक संख्या में निरर्थक शब्दों पर ध्यान को : केन्द्रित कर पाना प्रायः कठिन होता है।
(3) उद्दीपकों की पृष्ठभूमि – व्यक्ति के अवधान के विस्तार को निर्धारित करने में सम्बन्धित विषय-वस्तु की पृष्ठभूमि द्वारा भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जाती है। इसे कारक के स्पष्टीकरण के लिए पैटर्सन तथा टिचनर नामक मनोवैज्ञानिकों ने एक परीक्षण का आयोजन किया तथा निष्कर्षस्वरूप बताया कि यदि विषय-वस्तु की पृष्ठभूमि में अधिक विरोध हो तो उस स्थिति में व्यक्ति के अवधान का विस्तार सामान्य से अधिक होता है।
(4) उद्दीपकों के मध्य पायी जाने वाली दूरी – अवधान के विस्तार के निर्धारक कारकों में एक अन्य कारक है—उद्दीपकों के मध्य पायी जाने वाली दूरी। इस कारक को जानने के लिए 1938 ई० में वुडरो नामक मनोवैज्ञानिक ने एक परीक्षण का आयोजन किया तथा निष्कर्षस्वरूप स्पष्ट किया कि यदि उद्दीपकों के मध्य दूरी कम हो तो उस स्थिति में व्यक्ति के अवधान का विस्तार प्रायः कम होता है, क्योंकि इस स्थिति में विभिन्न उद्दीपकों को पहचानने में कुछ कठिनाई होती है। इससे भिन्न यदि सम्बन्धित उद्दीपकों के मध्य पर्याप्त दूरी हो तो उन्हें सरलता से पहचाना जा सकता है। इस दशा में व्यक्ति के अवधान का विस्तार बढ़ जाता है।
(5) उद्दीपकों से पूर्व-परिचय – यदि व्यक्ति को सम्बन्धित उद्दीपकों से पूर्व-परिचय हो तो उस दशा में अवधान का विस्तार उस स्थिति से अधिक हो सकता है, जिसमें व्यक्ति का उद्दीपकों से किसी प्रकार का पूर्व परिचय न हो।
(6) व्यक्ति की आयु – व्यक्ति के अवधान के विस्तार को प्रभावित एवं निर्धारित करने वाले कारकों में एक कारक है व्यक्ति की आयु। छोटे बच्चों को अवधान का विस्तार वयस्क व्यक्तियों की तुलना में कम होता है। आयु के आधार पर अवधान के विस्तार के इस अन्तर का मुख्य कारण है आयु के साथ-साथै व्यक्ति की मानसिक क्षमताओं में वृद्धि होना। जैसे-जैसे बालक की आयु बढ़ती है, वैसे-वैसे उसकी बुद्धि, स्मृति, कल्पना एवं चिन्तन शक्ति भी बढ़ती है तथा ये सभी क्षमताएँ अवधान के विस्तार में सहायक होती हैं।
(7) व्यक्ति की रुचि – व्यक्ति की रुचि का भी उसके अवधान के विस्तार पर अनिवार्य रूप से प्रभाव पड़ता है, अर्थात् रुचि भी अवधान के विस्तार का एक निर्धारक कारक है। जो विषय व्यक्ति के लिए रुचिकर होता है, उसके सन्दर्भ में व्यक्ति का अवधान-विस्तार अधिक होता है तथा अरुचिकर विषय के सन्दर्भ में व्यक्ति को अवधान-विस्तार अपेक्षाकृत रूप से कम होता है।
(8) व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला अभ्यास – अवधान-विस्तार के निर्धारक कारकों में व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला अभ्यास भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी एक प्रकार की विषय-वस्तु पर पुनः-पुनः अवधान केन्द्रित करने का अभ्यास किया जाता है तो व्यक्ति के अवधान-विस्तार में क्रमशः वृद्धि हो जाती है। इससे भिन्न यदि किसी विषय-वस्तु के प्रति प्रथम बार ध्यान केन्द्रित किया जाता है, उस स्थिति में व्यक्ति के अवधान का विस्तार कम भी हो सकता है।