प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया में संवेदना (Sensation) का विशेष महत्त्व है। वास्तव में अभीष्ट संवेदना के आधार पर ही प्रत्यक्षीकरण होता है। संवेदना के अभाव में प्रत्यक्षीकरण हो ही नहीं सकता। अब प्रश्न उठता है कि संवेदना से क्या आशय है अर्थात् संवेदना किसे कहते हैं? वास्तव में, जब कोई व्यक्ति या जीव किसी बाहरी विषय-वस्तु से किसी उत्तेजना को प्राप्त करता है, तब वह जो अनुक्रिया करता है, उसे ही हम संवेदना कहते हैं। सभी संवेदनाएँ इन्द्रियों द्वारा ग्रहण की जाती हैं। सैद्धान्तिक रूप से संवेदना सदैव प्रत्यक्षीकरण से पहले उत्पन्न होती है, परन्तु व्यवहार में संवेदना को ग्रहण करना तथा प्रत्यक्षीकरण सामान्य रूप से साथ-साथ ही होते हैं। संवेदनाएँ आँख, नाक, कान, जिल्ला तथा त्वचा नामक पाँच ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से ग्रहण की जाती हैं। प्रत्येक विषय की संवेदना विशिष्ट होती है। इस विशिष्टता के कारण ही प्रत्येक विषय का प्रत्यक्षीकरण अलग रूप में होता है। संवेदनाएँ अनेक प्रकार की होती हैं; जैसे-आंगिक संवेदनाएँ, विशेष संवेदनाएँ तथा गति संवेदनाएँ।