Use app×
QUIZARD
QUIZARD
JEE MAIN 2026 Crash Course
NEET 2026 Crash Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
35.3k views
in General by (55.1k points)
closed by

‘विकास’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। विकास में होने वाले परिवर्तनों का भी उल्लेख कीजिए।

1 Answer

+1 vote
by (52.9k points)
selected by
 
Best answer

विकास का अर्थ (Meaning of Development)

प्रायः विकास का अर्थ आयु में बड़े होने या कद में बड़े होने से लगाया जाता है, परन्तु विकास का यह अर्थ भ्रामक है। विकास का अर्थ है-“वे व्यवस्थित तथा समानुगत परिवर्तन, जो परिपक्वता की प्राप्ति में सहायक होते हैं। यहाँ पर व्यवस्थित का अर्थ है-क्रमबद्धता, अर्थात् शारीरिक और मानसिक परिवर्तन में कोई-न-कोई क्रम अवश्य होता है और प्रत्येक परिवर्तन अपने पूर्व परिवर्तन पर निर्भर रहता है। समुनगत शब्द का अर्थ है, इन परिवर्तनों में परस्पर सामंजस्य होता है अर्थात् ये परिवर्तन सम्बन्धविहीन नहीं होते। कुछ विद्वान् विकास को एक अवधारणा मानते हैं, परन्तु गैसल (Gassel) के अनुसार विकास एक अवधारणा मात्र नहीं है, वरन् विकास एक अवधारणा से कहीं अधिक है। विकास का निरीक्षण किया जा सकता है तथा उसका मूल्यांकन भी किया जा सकता है। विकास व्यक्ति में नवीन योग्यताएँ उत्पन्न करता है, जिससे उसमें नवीन विशेषताओं का जन्म होता है। दूसरे शब्दों में, विकास निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जो जन्म से पूर्व ही आरम्भ हो जाती है।

विकास की परिभाषाएँ (Definitions of Development)

विकास की कुछ प्रमुख परिभाषाओं का विवरण इस प्रकार है-
⦁    जेम्स ड्रेवर (James Drever) के अनुसार, “विकास वह दशा है, जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में व्यक्ति में निरन्तर प्रकट होती है अर्थात् यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी व्यक्ति में भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक चलता है और विकासतन्त्र को नियन्त्रण में रखता है। यह दशा प्रगति का मापदण्ड होती है तथा इसका प्रारम्भ शून्य से होता है।”
⦁    मुनरो (Munro) के अनुसार, “परिवर्तन श्रृंखला की वह व्यवस्था, जिसमें बालक भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास के नाम से जानी जाती है।”
⦁    हरलॉक (Hurlock) के अनुसार, “विकास अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं है। इसके बजाय उनमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है। विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और नवीन मान्यताएँ होती हैं।”
⦁    इंगलिश (English) के अनुसार, “विकास प्राणी की शरीर अवस्था में एक लम्बे समय तक होने वाले लगातार परिवर्तन का एक क्रम है। यह विशेषतया ऐसा परिवर्तन है, जिसके कारण जन्म से लेकर परिपक्वता और मृत्यु तक प्राणी में स्थायी परिवर्तन होते हैं।’

विकास में परिवर्तन के रूप
(Types of Changes in Development)

विकास में मुख्यतया चार प्रकार के परिवर्तन होते हैं|
1. आकार में परिवर्तन- आयु-वृद्धि के साथ-साथ बालकों के शारीरिक पक्ष में पर्याप्त परिवर्तन दिखलाई पड़ने लगता है। आकार में यह परिवर्तन परिपक्वता तक चलता रहता है। जन्म लेने के पश्चात् आयु के बढ़ने के साथ-साथ बालक की लम्बाई, भार, आकार आदि में भी वृद्धि होने लगती है। इसी प्रकार शरीर के आन्तरिक भाग में भी अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। उदाहरण के लिए-फेफड़े, हृदय तथा आँतों के आकार में वृद्धि हो जाती है। बालक नवीन शब्दों को सीखते हैं, जिससे उनके शब्दकोश का विस्तार होता है। धीरे-धीरे उनमें तर्कशक्ति का भी विकास होता जाता है।
2. अनुपात में परिवर्तन- विकास की प्रक्रिया में बालक के शारीरिक विकास में आनुपातिक परिवर्तन होता है। बालक को एक प्रौढ़ के रूप में समझना भारी भूल है, क्योंकि बालक तथा प्रौढ़ दोनों के शरीर में अनुपात सम्बन्धी विभिन्नता पायी जाती है। लगभग 14 वर्ष की आयु (किशोरावस्था) में जाकर बालक और प्रौढ़ के अनुपात के पुराने लक्षणों की समाप्ति में शारीरिक समानता आने लगती है। प्रारम्भ में शारीरिक विकास के अनुपात में इस प्रकार परिवर्तन होते हैं–सिर के अनुपात में दूनी, शरीर के अनुपात में तीन-गुनी तथा मस्तिष्क और शरीर के ऊपरी अंगों में चार-गुनी वृद्धि हो जाती है।

अनुपात सम्बन्धी परिवर्तन मानसिक रूप से भी दृष्टिगोचर होते हैं। छोटे बालक कल्पना तो करते हैं, परन्तु उनकी कल्पना लक्ष्यहीन होती है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है, उसकी कल्पना में वास्तविकता का अंश आने लगता है। इसी प्रकार आयु के साथ-साथ बालक की रुचियों में भी परिवर्तन होता है। प्रारम्भ में बालक स्वयं अपने में तथा अपने खिलौनों में रुचि लेता है। जब वह पर्याप्त बड़ा हो जाता है, तब वह आस-पास के साथी बालकों के साथ खेलने में रुचि लेने लगता है।

3. पुराने लक्षणों की समाप्ति- जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है, वैसे-ही-वैसे उसके पुराने लक्षण लुप्त होते जाते हैं। उदाहरणार्थ–एक छोटा शिशु प्रारम्भ में हाथ-पैर चलाता है, सरक-सरक कर चलता है तथा तुतला कर बोलता है, परन्तु वर्ष भर के बाद इनमें से अभिकांश लक्षणों का लोप हो जाता है। इसी प्रकार आयु-वृद्धि के साथ शरीर के अन्दर थाईमस ग्लैण्ड (Thymus Gland) का लोप हो जाता है। दूध के दाँत, जो जन्म के पश्चात् निकलते हैं, कुछ वर्ष बाद गिर जाते हैं और उनके स्थान पर स्थायी दाँत निकल आते हैं।
4. नवीन विशेषताओं की प्राप्ति- विकास क्रम में जहाँ पुराने लक्षणों का लोप हो जाता है, वहीं बालक का शरीर नवीन रूपरेखा ग्रहण करने लगता है। उदाहरण के लिए-तुतलाहट के स्थान पर बालक स्पष्ट बोलने लगता है। किशोरावस्था में तो अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन होते हैं। बालकों के दाढ़ी-मूंछ निकलने लगती है। उनकी आवाज में भारीपन आ जाता है। बालिकाओं के स्तनों में उभार आ जाता है। इन शारीरिक परिवर्तनों के कारण किशोर-किशोरियों की मानसिक क्रियाओं तथा सांवेगिक प्रतिक्रियाओं में पर्याप्त परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। दोनों वर्गों के सदस्यों में परस्पर आकर्षण तथा रुचि अत्यधिक तीव्रता से बढ़ने लगती है।

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...